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रविवार, 9 फ़रवरी 2025

तीन तत्वों पर आधारित जीवन (गंधर्व इत्यादि)

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तीन तत्वों पर आधारित जीवन (गंधर्व इत्यादि)

आपको याद होगा कि, इसी विचार श्रंखला के एक अंश 28. ब्रह्मांड की उत्पत्ति की विस्तृत व्याख्या” (https://anupamgyanganga.blogspot.com/search/label/2.%20ब्रह्मांड%20की%20उत्पत्ति) के अंतर्गत हमने इस सृष्टि के 14 लोकों का वर्णन किया था जिनमें पंचतत्व, चार-तत्व, तीन-तत्व तथा देवत्व  जीवन का अस्तित्व होता है। इसके अतिरिक्त तत्व जनित जीवन के विभिन्न आयाम भी अवश्य पढ़ें 

सनातन धर्म के अनुसार, तीन तत्वों के संयोजन से बने हुए गन्धर्व दिव्य जीव हैं। यह स्वर्ग में  निवास करते हैं तथा देवताओं के समक्ष अपनी संगीत कला तथा नृत्यकला का प्रदर्शन करते हैं। हैं। इन्हें स्वर्गीय संगीतज्ञ एवं नर्तक के रूप में जाना जाता है। वेदों में पुरुष रूपधारीयों को 'गंधर्व' एवं   स्त्रीरूपा गन्धर्वों को 'अप्सरा' बताया गया है तथा पुराणों में उन्हें 'गंधर्व', 'किन्नर', 'विद्याधर' नामों से भी वर्णित किया गया है। गन्धर्वों को प्रायः दिव्य और अलौकिक शक्तियों तथा मायावी विद्याओं का स्वामी भी माना गया है। वे अपनी इच्छानुसार रूप बदलने तथा अदृश्य होने की क्षमता रखते हैं। गन्धर्वों को औषधियों जड़ी-बूटियों का भी ज्ञान होता है। गन्धर्वों का विवाह अप्सराओं के साथ होता है। अप्सराएं स्वर्ग में रहने वाली अति सुंदर तथा नृत्यांगना देवियां हैं। गन्धर्व अप्सराओं के जोड़े को स्वर्ग का सबसे सुंदर तथा कलात्मक जोड़ा माना जाता है।

 

गन्धर्वों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:

स्वरूप: गन्धर्व बहुत ही सुंदर और आकर्षक होते हैं। उनका स्वरूप दिव्य होता है तथा उनके पास अलौकिक शक्तियाँ भी होती हैं।

कार्य: "गन्धर्व" शब्द हिंदू पौराणिक कथाओं में संगीत के लिए प्रसिद्ध दिव्य प्राणियों को संदर्भित करता है। इनकी संगीत शैली को “गन्धर्व वेद” के रूप में जाना जाता है, जो कि, सामवेद के अंतर्गत संगीत व नृत्य की एक विशेष शाखा है। यह भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला तथा विज्ञान पर केंद्रित है, जिसमें विभिन्न वाद्य-यंत्रों, शास्त्रीय रागों, स्वरों, तालों तथा संगीत रचनाओं के प्रदर्शन का ज्ञान समाहित है। गन्धर्वों का गायन, वादन, संगीत संचालन व मनमोहक नृत्य देवताओं को प्रसन्न करने का साधन है। इसके अतिरिक्त यह चित्रकला, वास्तुकला, काष्ठकला, मूर्तिकला जैसी कलाओं के संरक्षक हैं व दिव्य संगीत से देवताओं का मनोरंजन तथा स्वर्ग का वातावरण सुखद-सजीव बनाते हैं 

निवास स्थान: स्वर्ग में स्थित गन्धर्वलोक इनका निवास स्थान है। गन्धर्वों का समाज कड़े अनुशासन और नियमों पर आधारित होता है। वे स्वर्गीय विधान के अनुसार जीवन जीते हैं तथा उनके पास अलौकिक शक्तियाँ होती हैं। वे अपने समाज में अन्य दिव्य जीवों के साथ सौहार्द पूर्वक रहते हैं। समाज: इनका अपना सम्राट तथा उनका मंत्रिमंडल होता है। इनके अपने नियम तथा संस्कार हैं जो देवताओं व मनुष्यों से भिन्न हैं, जैसे गन्धर्व विवाह यह बिना किसी धार्मिक संस्कार या सामाजिक अनुष्ठान के, केवल प्रेम और सहमति पर आधारित स्वच्छंद विवाह होता है, अर्जुन-उलूपी तथा नल-दमयंती के गन्धर्व विवाह का वर्णन महाभारत में प्राप्त होता है।

 

इसके अतिरिक्त, रामायण में, रावण ने रम्भा नामक अप्सरा का अपहरण किया था। महाभारत में, अर्जुन ने चितरथ नामक गन्धर्व से युद्ध करके पराजित किया था। सनातन ग्रन्थों में कुछ महत्वपूर्ण  गन्धर्वों का विवरण ऐसे है:- 

1.  पुष्पदंत गन्धर्व

पुष्पदंत गन्धर्व भगवान शिव के भक्त एवं एक महान संगीतज्ञ थे। उन्होंने "शिव महिम्नस्तोत्र" की रचना की थी, जिसमें भगवान शिव की महिमा का वर्णन है। यह कथा प्रसिद्ध है कि पुष्पदंत ने भगवान शिव के उपवन से फूल चुराए थे, जिसके कारण उन्हें शाप मिला था। इस शाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने शिव महिमा स्तोत्र की रचना की थी।

2.  नारद मुनि

देवर्षि नारद अपने पूर्व जन्म में ‘उपबर्हण’ नामक एक गन्धर्व थे। वे वीणा वादन में निपुण थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त होने के कारण, अपने संगीत से भक्तों को विष्णु जी की भक्ति में लीन कर देते थे। वे अति रूपवान कला वान थे, परन्तु, उनमें अहंकार भी था। उपबर्हण को स्त्रियों के साथ समय बिताना पसंद था। एक समय जब सब गंधर्व तथा अप्सराएं जगदगुरु ब्रह्माजी की आराधना कर रहे थे तभी उपबहर्ण अप्सराओं के साथ उपहास व क्रीड़ा करने लगे। फलस्वरूप ब्रह्माजी ने क्रोधित हो उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया।

ब्रह्माजी के श्राप के चलते उपबहर्ण को अगले जन्म में एक दासी ने जन्म दिया। उनका नाम नंद रखा गया। नंद को बचपन से ब्राह्मणों की सेवा करना प्रिय था। वे तन-मन से ब्राह्मणों की सेवा में लीन रहते थे तथा उनकी प्रेरणा से वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए। समय के साथ उनका मन प्रभु की भक्ति में लगने लगा। इससे उनके पूर्व जन्म के पाप धीरे-धीरे क्षीण हो गए। इससे प्रसन्न होकर श्री हरि नारायण ने दर्शन दिए व नंद को ब्रह्मपुत्र होने का वरदान मिला।

उस सृष्टि के अंत उपरान्त, जब अगली सृष्टि की रचना के समय जब ब्रह्माजी ने नारद सहित 10 मानस पुत्रों को जन्म दिया। तब वे देवर्षि बन गए तथा तीनों लोकों में विचरण करते हुए वे विष्णुजी की महिमा का बखान करने लगे हैं। तीनों लोकों में विचरण करने के कारण उनके पास सब समाचार होते हैं तभी उन्हें संसार का प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है।

3.  तुंबुरु गन्धर्व

तुंबुरु गन्धर्व प्राचीन भारतीय साहित्य और पुराणों में एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जो अपने संगीत, नृत्य और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। तुंबुरु अद्वितीय संगीतकार और नर्तक थे। उनका वीणा वादन दिव्य और मधुर था, जो देवताओं के दरबार में गूंजता था। उनके नृत्य में कला और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय था, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके भजनों में विष्णु की महिमा का गुणगान होता था, जो भक्तों को भक्ति में लीन कर देता था। महाभारत के वन पर्व में तुंबुरु का उल्लेख है, जहाँ उन्होंने वनवास के दौरान पांडवों का मनोबल बढ़ाया। उन्होंने युधिष्ठिर को धैर्य और साहस के साथ कठिनाइयों का सामना करने की सलाह दी। तुंबुरु ने बताया कि भगवान शिव ने उन्हें गन्धर्वों का राजा बनने का वरदान दिया था। विष्णु पुराण और भागवत पुराण में तुंबुरु का वर्णन है। वे देवी लक्ष्मी के प्रिय गायक थे और उनके संगीत से स्वर्ग का वातावरण सजीव बनता था। तुंबुरु गन्धर्वलोक में रहते थे और अन्य गन्धर्वों के साथ संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करते थे। तुंबुरु और नारद मुनि ‘उपबर्हण’ के बीच गहरा संबंध था। दोनों महान संगीतज्ञ थे और एक-दूसरे के संगीत का आदर करते थे। उनके पास अलौकिक शक्तियाँ थीं, जो उन्हें अन्य गन्धर्वों से अलग बनाती थीं। तुंबुरु की कथाएँ और गुण प्राचीन भारतीय साहित्य में कला, संगीत और भक्ति के महत्व को दर्शाते हैं।

4. चित्रांगद गन्धर्व

चित्रांगद गन्धर्व महाभारत और प्राचीन भारतीय साहित्य में एक प्रमुख पात्र हैं, जो अपने संगीत, नृत्य, युद्ध कौशल और वीरता के लिए प्रसिद्ध हैं। चित्रांगद का उल्लेख महाभारत में दमयंती और नल की प्रसिद्ध कथा में मिलता है। जब नल ने दमयंती से प्रेम विवाह किया, तो चित्रांगद ने इस विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस अवसर पर अपने संगीत और नृत्य का प्रदर्शन किया, वे ही इस विवाह के साक्षी थे जिससे यह गन्धर्व विवाह विशेष हो गया। यह कथा प्रेम और सहमति पर आधारित विवाह का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चित्रांगद एक महान योद्धा थे और अपने अद्वितीय युद्ध कौशल के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और अपनी वीरता का परिचय दिया। महाभारत में उनकी वीरता और साहस का विस्तृत वर्णन मिलता है। चित्रांगद का गन्धर्व समाज में महत्वपूर्ण स्थान था। वे अपने कर्तव्यों का पालन करते थे और गन्धर्व समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करते थे। उनकी संगीत और नृत्य कला ने उन्हें स्वर्ग में एक विशेष स्थान दिलाया, जबकि उनके युद्ध कौशल और वीरता ने उन्हें गन्धर्व समाज का एक प्रमुख सदस्य बना दिया। चित्रांगद का चरित्र प्राचीन भारतीय साहित्य में कला, संगीत, और युद्ध कौशल के समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी कथाएँ हमें यह सीख देती हैं कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस, धैर्य, भक्ति तथा समर्पण आवश्यक हैं।

5. विश्वावसु गंधर्व

विश्वावसु एक प्रसिद्ध गंधर्व राजा रहे हैं, इनका वंश देवगंधर्वों में से एक था. विश्वावसु प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी प्राधा के पुत्र थे। वे देवगन्धर्वों में से एक थे और उनके कई भाई-बहन भी थे, जो गन्धर्व समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। विश्वावसु प्राचीन भारतीय गन्धर्वों में से एक प्रमुख नाम है। वे अपनी संगीत कला और दिव्य गुणों के लिए प्रसिद्ध थे। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, विश्वावसु की पुत्री मदालसा का पातालकेतु ने अपहरण कर लिया था। विश्वावसु ने “चाक्षुषी विद्या” का ज्ञान सोम से प्राप्त किया था वे इस विद्या में अत्यन्तं पारंगत थे तथा इसे अपने शिष्य चित्ररथ गन्धर्व को सिखाया।

महाभारत में वर्णित है कि विश्वावसु द्रौपदी के स्वयंवर में शामिल हुए थे। वहाँ उन्होंने अपने संगीत और कला का प्रदर्शन किया था। इन्द्र के दरबार में स्थान: विश्वावसु इन्द्र के दरबार के प्रमुख संगीतज्ञ थे। उनके संगीत में अद्वितीय सौंदर्य और आध्यात्मिकता थी, जो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती थी। विश्वावसु भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके भजनों में भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान होता था और उनके भजन सुनकर भक्तों को भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होने का अनुभव होता था। विश्वावसु ने अपने साहस और वीरता के लिए भी ख्याति प्राप्त की थी। वे अपने परिवार और समाज की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उन्होंने अपनी “चाक्षुषी विद्या” व  संकल्प शक्ति से आकाशगंगा (मिल्की वे) की उत्पत्ति की।

एक समय, विश्वावसु ने निर्णय लिया कि वह कुछ ऐसा रचेंगे जो सदा के लिए आकाश में चमके और उनकी महानता का प्रतीक बने। वे अपने महल के सबसे ऊँचे बिंदु पर गए और आकाश को निहारने लगे। उन्होंने अपनी आँखें बंद की और ध्यान लगाकर अपनी समस्त शक्ति को एकत्र किया तथा अपनी असीमित शक्ति से, एक महान ज्योति उत्पन्न की। यह ज्योति इतनी तेजस्वी और दिव्य थी कि इसने सम्पूर्ण आकाश मंडल को जगमगा दिया। यह एक अभूतपूर्व, अद्वितीय अलौकिक ज्योति थी, जिसे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था। विश्वावसु ने अपनी शक्ति का उपयोग करके इस ज्योति को सब ओर विस्तारित किया, और इस प्रकार आकाशगंगा का जन्म हुआ। यह आकाशगंगा इतनी सुंदर और अद्भुत थी कि इसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। आज भी रात के समय, जब पूरा संसार अंधेरे में डूब जाता, तब यह आकाशगंगा चमकने लगती है। इसके झिलमिलाते असंख्य तारे एक अत्यंत मनमोहक एवं अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करतें है जिसे देखते ही मन आनंदित हो जाता है। विश्वावसु का यह महान कार्य उनकी असीमित शक्ति, ज्ञान तथा करुणा का प्रतीक है। उनकी इस अद्वितीय रचना ने उन्हें अमर कर दिया, और हम उनकी इस महानता को आज भी याद रखते हैं।

विश्वावसु गन्धर्व ने चाक्षुषी विद्या में प्रवीणता प्राप्त की थी वे इसके सबसे बड़े विशेषज्ञ माने जाते हैं। इस विद्या के माध्यम से व्यक्ति विभिन्न कालखंडों की घटनाओं को देख सकता है। यह ज्ञान व्यक्ति को भविष्यवाणी करने और सही निर्णय लेने में मदद करता है। यह विद्या व्यक्ति को दिव्य दृष्टि प्रदान करती है, जिसके माध्यम से वह अदृश्य एवं असामान्य घटनाओं को भी देख सकता है। यह विद्या व्यक्ति को अलौकिक शक्तियों का अनुभव करने में सक्षम बनाती है। चाक्षुषी विद्या का प्रयोग अधिकतर ऋषियों और दिव्य जीवों द्वारा किया गया है, यह विद्या व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति में उन्नति करने में मदद करती है।

विश्वावसु देवताओं के साथ समय बिताते थे और उनके साथ विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेते थे। उनकी उपस्थिति देवताओं के बीच में सदैव आनंद और उल्लास का कारण बनती थी। वे इन्द्र के दरबार में संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करते थे, जिससे देवताओं को प्रसन्नता मिलती थी। विश्वावसु की यह कथा हमें यह सीख देती है कि सच्ची रचनात्मकता और समर्पण से कुछ भी असंभव नहीं है। उनकी दिव्य शक्ति व ज्ञान ने उन्हें एक अमर पहचान दी, जो आज भी प्रासंगिक है।

इस प्रकार हमने कुछ गन्धर्वों के विषय में ज्ञान प्राप्त किया। इनके अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे गन्धर्व, यक्ष, किन्नर इत्यादि नामों से इनके सन्दर्भ हमारे धार्मिक ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, जहां प्रेत इत्यादि दुस्टात्मा होते हैं वहीं गन्धर्व देवताओं के भक्त होते हैं तथा यदि वे कभी अपने कर्तव्य-पथ से हट भी जाएँ तो भी अन्य प्राणियों का अहित नहीं करते इसी कारण से सम्माननीय हैं। 



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