ब्लॉग आर्काइव

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

भूत-प्रेत इत्यादि

 

-29-

चार तत्वों पर आधारित जीवन (भूत-प्रेत इत्यादि)


मानव शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश) के संयोजन से बना है साथ ही चार, तीन व दो तत्वों से बने प्राणियों का भी इस सृष्टि में अस्तित्व होता है। आज चार तत्वों पर आधारित जीवन (भूत-प्रेत इत्यादि) पर विचार करेंगे। सनातन धर्म में गति तथा कर्म के अनुसार, अतृप्त मृतकों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है :- भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, चुड़ैल, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल, एवं क्षेत्रपाल आदि। इन सभी के विभिन्न प्रकार के अन्य सूक्ष्म वर्गीकरण भी होते हैं। हम सभी ने अपने बाल्यकाल से इन विषयों के बारे में सुना और पढ़ा है। आइए अब इस विषय के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें।

 

शास्त्रों में आत्मा के तीन स्वरूपों का वर्णन मिलता है; यह जीवित शरीर में “जीवात्मा”, मृत्यु अथवा अचेतन अवस्था में “सूक्ष्मात्मा” तथा मृत्यु उपरान्त “प्रेतात्मा” कहलाती हैं। प्रेतात्मा की तीन प्रकार की गति वर्णित की गयी है; सामान्य गति, सद्गति तथा दुर्गति। यदि मृत्यु के उपरान्त, किसी भी कारणवश अतृप्त वासना या कामनाएं छूट जाती हैं, तो वह इस संसार से मुक्त नहीं हो पाती फलस्वरूप प्रेतात्मा की दुर्गति हो जाती है  तथा इनको ही “भूत-प्रेत” कहते हैं। सामान्यतः: ऐसा विश्वास है कि, यह सभी “दुस्टात्मा” (बुरी आत्मा) होते हैं परन्तु, वास्तव में ये सभी स्वयं भी कष्टों से पीड़ित होते हैं तथा अपनी मुक्ति हेतु प्रयत्नशील रहते हैं

 

इस विषय में एक अन्य बात समझना अत्यधिक आवश्यक है वह यह है कि हम अपनी “जीवात्मा” का साक्षात्कार अपने शरीर के माध्यम द्वारा भी कर सकते हैं। इसमें तीन प्रकार के अनुभव बताए गए हैं: ‘सूक्ष्म शरीर यात्रा’ जिसमें, व्यक्ति की आत्मा या चेतना उसके शरीर से मुक्त हो कर ब्रह्मांड में घूम सकती है। “परकाया प्रवेश” जिसमें किसी अन्य के शरीर में प्रवेश करके उसकी ज्ञानेन्द्रियों के अनुभव प्राप्त किये जा सकते हैं तथा विपाशना” यह आत्म-निरीक्षण और आत्म-शुद्धि की एक उत्तम पद्धति है. इसे अंतर्दृष्टि ध्यान भी कहा जाता है। चेतना अथवा मन की पांच अवस्थाएं हैं; (1) क्षिप्त (2) मूढ़ (3) विक्षिप्त (4) एकाग्र एवं (5) निरुपद्रव। इनकी समझ से हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं। भविष्य में कभी हम इस विषय पर विस्तृत विचार करेंगे परन्तु सबसे प्रचलित एक विधि का विवरण इस प्रकार से है;

योग निंद्रा विधि : इस विधिनुसार साधक, शवासन में प्राणायाम तथा आज्ञा चक्र पर त्राटक से अंतर्दृष्टि ध्यान का आरम्भ करता है। इस अभ्यास के अभ्यस्त हो जाने के उपरान्त जब उसके ध्यान की अवस्था अत्यधिक गहरी हो जाती है तब उसे अपने सूक्ष्म शरीर के स्थूल शरीर से बाहर निकल जाने का अनुभव होने लगता है। इस अवस्था में साधक को ऐसा लगता है जैसे वह सो रहा है तथा उसका सूक्ष्म शरीर अलग हो कर हवा में तैर रहा है। इस अवस्था में वह सब कुछ देख-सुन तो सकता है पर स्पर्श नहीं कर सकता तथा कुछ भी बोल नहीं सकता है। योगी इसी अवस्था के अगले स्तर की प्राप्ति  मन की गति से सम्पूर्ण ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसी विधि का प्रयोग विचारों के आदान-प्रदान (टेलीपैथी) हेतु भी होता है।

जैसा हम जान चुके है भूत-प्रेत एक अवधारणा है जो अलौकिक व आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ी है। यह नकारात्मक, हानिकारक तथा दूषित वृत्ति वाली होती है। विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में विभिन्न बुरी आत्माएं वर्णित हैं, जो शांति नहीं पा सकीं एवं संसार में भटकती रहती हैं। यह कुछ कारणों से बनते हैं, जैसे: अधूरी इच्छाएँ: जब व्यक्ति की जीवन में कुछ इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं। अप्राकृतिक मृत्यु: अचानक या हिंसक तरीके से मृत्यु होने पर। अन्याय या दुख: किसी व्यक्ति के प्रति बहुत अन्याय या अत्यधिक दुख होने पर। इनमें से कुछ प्रेतात्माएं अपनी मुक्ति को प्रयत्नशील रहती हैं तो कुछ जीवित प्राणियों को डराने, परेशान करने तथा नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं यह निम्न प्रकारों में वर्णित हैं;

साधारण प्रेत: वे आत्माएँ जो किसी कारणवश संसार में भटक रही होती हैं।

पिशाच: इनको रक्त पिपासु तथा जीवन शक्ति को हरण करनेवाले के रूप में माना गया है, यह मायावी तथा भयावह होने के अतिरिक्त खतरनाक भी माने जाते हैं। पश्चिमी सभ्यता इन पर अत्यधिक विश्वास करती है तथा भिन्न श्रेणियों में इनका वर्गीकरण भी किया गया है।चुड़ैल: यह महिला प्रेत होती है जिसे विशेष रूप से बुरी आत्मा माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि, तांत्रिक आदि इनको वश में करके अपने कार्य सिद्ध करते हैं। सामान्यतः इनकी शक्ति इनके लम्बे केशों में मानी जाती है तथा ऐसा विश्वास है कि, यदि कोई इनके केश पकड़ ले तो यह उसके वश में आ जाती है। इसका चित्रण उलटे पैरों वाली स्त्री के रूप में किया जाता है।

भूत: ये आत्माएँ आमतौर पर किसी विशेष स्थान या व्यक्ति से बंधी होती हैं। सामान्यतः सुनसान इलाकों, खंडहरों, खाली मकानों अथवा इनके मृत्यु के स्थानों पर इनका पाया जाना बताया जाता है। इनको बिना पैर वाला तथा हवा में उड़ने वाला माना गया है

डाकिनी/शाकिनी: ये आत्माएँ अधिकतर तंत्र-मंत्र और अघोरी साधना से जुड़ी होती हैं। इन्हें तांत्रिक शक्तियों वाली महिला आत्मा के रूप में जाना जाता है। ये विशेष रूप से रात्रि के समय सक्रिय होती हैं। डाकिनी व शाकिनी दोनों ही तांत्रिक परंपराओं में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनकी विशेषताएँ थोड़ी भिन्न हो सकती हैं। तांत्रिक साधना में, डाकिनी का विशेष अनुष्ठानों एवं साधना हेतु आह्वान किया जाता है ताकि साधक को अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सहायता प्राप्त हो सके जबकि, शाकिनी को खतरनाक व हानिकारक आत्मा माना जाता है। इसे मनुष्यों को कष्ट देने वाली राक्षसी आत्मा के रूप में भी देखा जाता है परन्तु, बौद्ध सम्प्रदाय इन्हें भी सात्विक रूप में पूजता है।

दुष्ट आत्माएं: कुछ धार्मिक मान्यताओं में बुरी आत्माएं दुष्ट शक्तियों या देवताओं के अधीन होती हैं। इन्हें शैतान, जिन्न या अन्य दुष्ट प्राणियों के रूप में देखा जाता है। यह अत्यधिक शक्तिशाली हो सकती हैं। यह रक्त, अग्नि, जल, के माध्यम से अपना अस्तित्व प्रकट करते हैं। यह अपने ग्रसित मनुष्य को अत्यधिक लोभी, कामी बना कर कुत्सित कार्यों में प्रेरित करते हैं यही किसी अन्य मनुष्य की हत्या भी करवाने की शक्ति तथा भावना भी रख सकते हैं  

नकारात्मक ऊर्जा: कुछ लोग बुरी आत्माओं को नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मानते हैं, जो किसी व्यक्ति के जीवन में अशांति, बीमारी या दुर्भाग्य ला सकती है।

अधिग्रहण: कुछ मान्यताओं के अनुसार, बुरी आत्माएं किसी व्यक्ति के शरीर या मन पर कब्जा कर सकती हैं, जिससे वह व्यक्ति असामान्य व्यवहार करने लगता है। इसे अक्सर "प्रेतबाधा" या "बुरी नजर" के रूप में जाना जाता है। बुरी आत्माओं की अवधारणा अक्सर डर, अंधविश्वास तथा रहस्यमय घटनाओं से जुड़ी होती है। विज्ञान इन्हें मनोवैज्ञानिक या सामाजिक घटनाओं के रूप में देखता है, जबकि आध्यात्मिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण में इन्हें पृथक माना गया है।

 

धर्म शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में भूख प्यास, रोग, क्रोध, वासना, इत्यादि की इच्छाओं के साथ अथवा हत्या, दुर्घटना इत्यादि से असामयिक मृत्यु को प्राप्त करता है, उसे मृत्युलोक में भूत-प्रेत बनकर भटकना पड़ता है। ऐसी आत्माएं अपनी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भटकती रहती हैं। इसके साथ ही जिन आत्माओं का श्राद्ध कर्म, तर्पण इत्यादि नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा भी मृत्युलोक में अपनी इच्छा पूर्ति के लिए भटकती रहती है तथा इसके प्रमुख कारण हैं:

  1. अधूरी इच्छाएं व प्रतिशोध: जब किसी व्यक्ति की मृत्यु अचानक या दर्दनाक परिस्थितियों में होती है और उसकी कुछ इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, तो ऐसी आत्माएं अक्सर प्रतिशोध लेने की कोशिश करती हैं।
  2. अंतिम संस्कार का न होना: यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शव का उचित अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है, तो उसकी आत्मा अशांत रह सकती है।
  3. दुष्ट कर्म: जीवनकाल में किए गए दुष्ट कर्मों का असर मृत्यु के बाद भी आत्मा पर हो सकता है, जिससे वह बुरी आत्मा बन सकती है।
  4. जादू-टोना एवं तंत्र-मंत्र: कुछ मान्यताओं में यह माना जाता है कि जादू-टोना या तंत्र-मंत्र के प्रयोग अथवा प्रभाव से भी आत्माएं बुरी बन सकती हैं।
  5. भटकाव तथा भ्रम: कभी-कभी आत्माएं अपनी मृत्यु के बाद भ्रमित होकर सही दिशा नहीं पा पातीं, जिससे वे भटकती रहती हैं और अंततः बुरी आत्मा का रूप धारण कर लेती हैं।

वस्तुतः सभी मान्यताओं के अनुसार यह कमजोर शरीर ढूंढती है अतः जो व्यक्ति, मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं तथा डरे-डरे रहते हैं, उन पर भूतों का साया आसानी से पड़ सकता है।

ज्योतिष शास्त्र में इसे ग्रहों की स्थितियों द्वारा बताया गया है कि, जब राहु लग्न भाव में या कुंडली के अष्टम भाव में होता है एवं उस पर अन्य क्रूर ग्रहों की दृष्टि होती है तो जातक पर इसका प्रभाव पड़ता है तथा नकारात्मक शक्तियां उसे प्रभावित कर सकती है। इन सबसे से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय बताये गए हैं:

1. धार्मिक व आध्यात्मिक उपाय

·       प्रार्थना एवं मंत्र: माना जाता है कि नियमित रूप से हवन, पूजन, प्रार्थना, मंत्र जाप या धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।

·       पवित्र वस्तुओं का उपयोग:  अपनी-अपनी धार्मिक मान्यता अनुसार तुलसी-माला, रुद्राक्ष, गंडे, ॐ का चिन्ह, देवी देवताओं के चित्रों, तावीज, क्रॉस तथा भभूत का प्रयोग जैसी वस्तुओं को सुरक्षात्मक माना जाता है।

·       धूप व अगरबत्ती:  घर या संस्थान में गुग्गल या चंदन की धूप, लोबान आदि जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

·       जल छिड़काव: गंगाजल, पवित्र व अभिमंत्रित जल का छिड़काव करने से शुद्धिकरण होता है।

2. वास्तु एवं वातावरण संबंधी उपाय

  • घर की सफाई: घर को साफ-सुथरा व सुव्यवस्थित रखें। गंदगी तथा अव्यवस्था नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है।
  • नमक का उपयोग: नमक को नकारात्मक ऊर्जा को सोखने वाला माना जाता है। घर के कोनों में नमक रखें या नहाने के पानी में नमक डालकर स्नान करें।
  • मिर्च और नींबू: कुछ मान्यताओं में मिर्च और नींबू को बुरी नजर से बचाने वाला माना जाता है। इन्हें घर व संस्थानों के मुख्य द्वार पर लटकाया जाता है।

3. मानसिक तथा शारीरिक सुरक्षा

  • सकारात्मक सोच: नकारात्मक विचारों एवं भय त्यागें। सकारात्मक सोच तथा आत्मविश्वास बुरी शक्तियों से बचाता है।
  • ध्यान तथा योग: नियमित ध्यान व योग इत्यादि से मन शांत एवं स्थिर रहता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य: स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है, अतः सात्विक, पौष्टिक सुपाच्य आहार व नियमित व्यायाम करें।

4. अन्य लोकप्रिय उपाय

  • लोहे की वस्तु: कुछ मान्यताओं में लोहे को बुरी आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है इसीलिए घर में लोहे की कील या दरवाजे पर घोड़े की नाल लगाने की प्रथा है।
  • तावीज या कवच: कुछ लोग तावीज, कवच, या रक्षा कवच पहनते हैं, जिन्हें सुरक्षात्मक माना जाता है।
  • बुरी नजर से बचाव: बच्चों और बड़ों को बुरी नजर से बचाने के लिए काजल लगाना या नीम की पत्तियां जलाना जैसे उपाय किए जाते हैं।

5. विशेषज्ञ की सहायता

  • अधिकतर मामलों में मनोवैज्ञानिक सहायता ही पर्याप्त होती है, क्योंकि कई बार मानसिक समस्याओं को ही प्रेत का प्रभाव समझ लिया जाता है।
  • यदि आपको लगता है कि आप पर प्रेत इत्यादि का प्रभाव है, तो किसी धार्मिक गुरु, पंडित, या आध्यात्मिक विशेषज्ञ से सलाह लें।

निष्कर्ष:

योग में कहा गया है कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है 'चित्त की वृत्तियां'। इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है “योगस्य चित्तवृत्ति निरोध:” अर्थात शरीर की आदतों का नियन्त्रण । इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार काम, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं, जिसे संचित कर्म कहते हैं। यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं तथा भविष्य निर्धारित करते है। अच्छे कर्मों की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ही हमारी सर्वाधिक तथा सर्व प्रकार से रक्षा करता है।


(सन्दर्भ हेतु- 5. तत्व जनित जीवन के आयाम अवश्य पढ़ें.)


Link: अनुपम ज्ञान गंगा: 5. तत्व जनित जीवन के विभिन्न आयाम।


हरि ॐ शांति





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें