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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

ब्रह्मांड की उत्पत्ति की विस्तृत व्याख्या

 

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ब्रह्मांड की उत्पत्ति की विस्तृत व्याख्या

 

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त (सृष्टि सूक्त) में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में गहन दार्शनिक विचार दिए गए हैं। यह सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले की स्थिति और उसके निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करता है इस सूक्त में ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले की अवस्था को एक रहस्यमय और अज्ञात स्थिति के रूप में वर्णित किया गया है। यह सूक्त बताता है कि सृष्टि के आरंभ में कुछ भी नहीं था, न अस्तित्व था और न अनस्तित्व। इसके अतिरिक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त ने आरम्भिक पिंड को “हिरण्यगर्भ” नाम से सम्बोधित किया है तथा इसके विभाजन को ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति का कारण माना है। आधुनिक विज्ञान को बिग-बैंग में "शून्य से सृष्टि" का सिद्धांत यहीं से प्राप्त हुआ है।

उत्पत्ति के बाद विस्तार को, मूल ऋग्वेद के श्लोक (सं. 1.154.1) "द्यौः पृथिवी अन्तरिक्षम्" अर्थ: "आकाश, पृथ्वी व अंतरिक्ष के माध्यम से समझाया है और "ब्रह्मांड विस्तार" का सिद्धांत भी आधुनिक विज्ञान ने यहीं से उठाया है। हम पहले ही जान चुके हैं कि, वैदिक साहित्य में सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश को एक चक्र के रूप में देखा गया है, जिसमें ब्रह्मांड का विस्तार तथा संकुचन होता है। मनुस्मृति के मूल श्लोक सं. (1.5) "यथा पूर्वमकल्पयत्" अर्थात, "जैसा पहले था, वैसा ही फिर से होगा।" को ही आधुनिक विज्ञान “बिग-बैंग” तथा “बिग-क्रंच” का सिद्धांत बताता है

 

वैदिक “पुरुष सूक्त” में ब्रह्मांड की उत्पत्ति को एक विराट पुरुष (ब्रह्मांडीय चेतना) तथा प्रकृति (उर्जा) से जोड़कर देखा गया है “यह सब कुछ, जो अस्तित्व में है और जो भविष्य में होगा, वह सब पुरुष (ब्रह्मांडीय चेतना) ही है। वह अमरता का स्वामी है एवं ऊर्जा से विकसित होता है कहा। जबकि, शिव महापुराण इसे “शिव तत्व” तथा “शक्ति तत्व” के नाम से पुकारता है

 

श्रीमद देवी भागवत की एक कथा के अनुसार- सृष्टि की रचना हेतु ‘शक्ति’ की प्राप्ति की कामना से महेश्वर समाधिस्थ हो कर तप करने लगे तथा उनको ऐसा करते देखकर विष्णु और ब्रह्माजी भी ताप करने बैठ गये। इन तीनों के तप की परीक्षा करने के लिये स्वयं भगवती विराट‌ रूप धारण कर उनके पास आयीं, जिसे देखकर ब्रह्मा तथा विष्णु तो डर गये, परन्तु भगवान्‌ सदाशिव इस परीक्षा के रहस्य को जानकर समाधि में लीन रहे।

तपस्या में रत भगवान्‌ शिव पर पराम्बा भगवती ने प्रसन्न होकर कहा- मैंने सृष्टि के निमित्त ही आप तीनों को अपनी उर्जा से उत्पन्न किया है। अतः आप मेरी इच्छानुसार ही सृष्टि का कार्य करेंगे तथा मैं, सरस्वती, गायत्री, लक्ष्मी, सती तथा पार्वती - पांच देवियों में विभक्त होकर आप लोगो की पत्नियां बनकर स्वेच्छापूर्वक विहार करूँगी। मैं ही सभी प्राणियों में नारी रूप धारण कर उनमें पुरुष-रूपी ‘शिवांश’ के संयोग से समस्त जीवों को जन्म दूंगी। सृष्टि में जीवों की उत्पत्ति तथा उनके विकास की कथा के रूप में समझा रहा है

 

अन्य सनातन ग्रन्थों में सृष्टि के विषय पर विभिन्न दृष्टि कोणों से यह वर्णन दिया है

1. ब्रह्मांड की उत्पत्ति में ब्रह्मा की भूमिका

पुराणों के अनुसार, ब्रह्मांड की उत्पत्ति का आरंभ ब्रह्मा के द्वारा होता है। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता (सृष्टिकर्ता) माना जाता है।

  • विष्णु पुराण एवं मत्स्य पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल अंधकार (तमस) तथा जल था। इस अवस्था को प्रलय कहा जाता है।
  • इसके बादविष्णु (परमात्मा) ने अपनी योग निद्रा से जागकर एक कमल को उत्पन्न किया, जिसमें से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा ने इस कमल से सृष्टि की रचना की।
  • ब्रह्मा ने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को बनाया और फिर सभी जीवों और वनस्पतियों की रचना की।

2. सृष्टि चक्र (कल्प)

पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश को एक चक्र के रूप में वर्णित किया गया है। इसे कल्प कहा जाता है। एक कल्प में चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग) होते हैं।

  • ब्रह्मा का एक दिन: ब्रह्मा का एक दिन कल्प कहलाता है, जो 4.32 अरब वर्षों के बराबर होता है। इसके बाद प्रलय (विनाश) होता है, जो ब्रह्मा की रात होती है।
  • ब्रह्मा का जीवनकाल: ब्रह्मा का जीवनकाल 100 वर्ष (ब्रह्मा के वर्षों में) होता है, जो मनुष्यों के लिए 311 अरब सौर वर्षों के बराबर है। इसके बाद पूर्ण प्रलय होता है।

3. विष्णु व शिव की भूमिका

  • विष्णु: विष्णु को ब्रह्मांड का पालनकर्ता माना जाता है। वे सृष्टि के संतुलन और व्यवस्था को बनाए रखते हैं। विष्णु पुराण में कहा गया है कि विष्णु ही ब्रह्मांड के आदि कारण हैं।
  • शिव: शिव को संहार कर्ता माना जाता है। वे प्रलय के समय ब्रह्मांड का संहार करते हैं, ताकि नई सृष्टि का निर्माण हो सके।

4. सृष्टि की उत्पत्ति का विवरण;

मत्स्य पुराण:

  • मत्स्य पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल जल था। विष्णु ने इस जल में एक विशाल मत्स्य (मछली) का रूप धारण किया और ब्रह्मा को सृष्टि की रचना करने के लिए प्रेरित किया।

विष्णु पुराण:

  • विष्णु पुराण में कहा गया है कि सृष्टि के आरंभ में केवल ब्रह्म (परम सत्य) था। ब्रह्म से विष्णु प्रकट हुए, और विष्णु से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की।

शिव पुराण:

  • शिव पुराण के अनुसार, शिव ही सृष्टि के आदि कारण हैं। शिव ने अपनी शक्ति (शक्ति या पार्वती) से ब्रह्मा और विष्णु को उत्पन्न किया, जिन्होंने सृष्टि की रचना और पालन की।

5. सृष्टि की संरचना

पुराणों में ब्रह्मांड की संरचना को विस्तार से वर्णित किया गया है। इसे लोक और तल में विभाजित किया गया है:

  • लोक: ब्रह्मांड को 14 लोकों में विभाजित किया गया है, जिनमें सात ऊपरी लोक (स्वर्ग लोक) और सात निचले लोक (पाताल लोक) शामिल हैं।
  • तल: पाताल लोकों को तल कहा जाता है, जो पृथ्वी के नीचे स्थित हैं।

6. प्रलय (ब्रह्मांड का विनाश)

पुराणों में प्रलय (ब्रह्मांड का विनाश) को भी विस्तार से वर्णित किया गया है। प्रलय के समय शिव अपना तांडव नृत्य करते हैं और पूरे ब्रह्मांड का संहार करते हैं। इसके बाद फिर से सृष्टि की रचना होती है।

निष्कर्ष:

वैदिक साहित्य में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके विस्तार से संबंधित गहन दार्शनिक विचार मिलते हैं। हालांकि, ये विचार आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों से सीधे तौर पर मेल नहीं खाते, परन्तु, इनमें निम्नलिखित समानताएं हैं, जैसे:

  • सृष्टि की उत्पत्ति से पहले की रहस्यमय स्थिति।
  • ब्रह्मांड का एक बिंदु (हिरण्यगर्भ) से प्रारंभ होना।
  • ब्रह्मांड के विस्तार तथा उसके चक्रीय स्वरूप का विचार।

आधुनिक विज्ञान अभी कुछ सौ वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आया है तथा हमारे सनातन धर्मग्रंथ हजारों वर्षों से अमूल्य ज्ञान को अपने आप में संजोये हुए है। यही सनातन दर्शन तथा विज्ञान की महानता है। 




  


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