उर्जा (शक्ति)
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ऊर्जा गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा के रूप में
प्रत्येक वस्तु में विद्यमान रहती है। प्रकृति में यह प्रकाशमय ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, गुरुत्वाकर्षण
ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ध्वनि
ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा तथा परमाणु ऊर्जा आदि रूपों में
प्रकट होती है। प्रत्येक ऊर्जा को एक अन्य रूप में परिवर्तित या बदला जा सकता है
परन्तु इसे नष्ट नहीं किया जा सकता। सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में ऊर्जा को एक
मौलिक और दिव्य शक्ति के रूप में देखा जाता है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा को “शक्ति” कह
कर सम्बोधित किया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार मानव शरीर में स्थित ऊर्जा को
मुख्य रूप से पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
1. प्राण ऊर्जा: यह जीव शक्ति की ऊर्जा है, जो सभी जीवित प्राणियों में पाई जाती है। इसका प्रभाव
समाप्त हो जाने पर जीव मृत्यु को प्राप्त होता है। यह शरीर के श्वसन तंत्र को
सक्रिय करती है और हमारे आंतरिक अंगों के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती
है। योग और प्राणायाम के अभ्यास से प्राण ऊर्जा को संतुलित और सशक्त किया जा सकता
है।
2. भौतिक ऊर्जा: उष्मीय ऊर्जा शरीर के तापमान को नियंत्रित करती है। यह
शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं एवं पाचन क्रिया को सक्षम बनाती
है। हमारे पाचन तंत्र को सही ढंग से काम करने हेतु उष्मा आवश्यक है। विद्युतिय
ऊर्जा शरीर के तंत्रिका तंत्र के संचालन को नियंत्रित करती है। यह मस्तिष्क व शरीर
के अन्य अंगों के बीच सूचना के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विद्युत ऊर्जा से हमारे तंत्रिका के निर्देश तीव्रता से संचालित होते हैं, जिससे हम विचार करते हैं, अनुभव करते हैं एवं उचित प्रतिक्रिया करते हैं। यांत्रिक ऊर्जा
शरीर की गतिशीलता तथा मांसपेशियों के संचालन में सहायक होती है। यह ऊर्जा हमें चलने, दौड़ने, उठाने व अन्य
शारीरिक गतिविधियाँ करने में सहायता करती है।
मांसपेशियों की यांत्रिक ऊर्जा शरीर को आवश्यक बल एवं गति प्रदान करती है। इन सभी उर्जाओं के उचित संतुलन के फलस्वरूप हमारा शरीर स्वस्थ व सक्रिय रहता है।
3. मानसिक ऊर्जा: यह हमारे विचारों, भावनाओं एवं चेतना की गतिविधियों से संबंधित ऊर्जा
है। यह ऊर्जा का अत्यधिक प्रबल स्वरूप है तथा ब्रह्मांड के स्वरूप को परिवर्तित
करने की भी शक्ति रखता है।
4. आध्यात्मिक ऊर्जा: यह उच्चतम स्तर की ऊर्जा है, यह सम्पूर्ण रूप से मानसिक
विचारों पर आधारित है तथा यही उर्जा आत्मा
के परमात्मा से जुड़ने की भावना से संबंधित है।
5. कुंडलिनी ऊर्जा: यह एक विशेष प्रकार की ऊर्जा है, जो हमारे शरीर में स्थित
होती है एवं जागृत होने पर आध्यात्मिक गूढ़ व अपार शक्तिशाली गुप्त शक्तियाँ प्रदान
करती है।
इन पाँच प्रकार की ऊर्जाओं का संतुलन व सामंजस्य हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखी एवं आध्यात्मिक रूप से
समृद्ध बनाने में मदद कर सकता है।
हिंदू धर्मग्रंथों और वेदों के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति में ऊर्जा का सबसे पहले प्रकट
होने वाला रूप था "शब्द" या "ध्वनि" ऊर्जा। इसे
"नाद" या "ओंकार" के रूप में भी जाना जाता है, जो सृष्टि की उत्पत्ति के
समय विभिन्न ध्वनियों एवं खगोलीय कंम्पनो के माध्यम से प्रकट हुआ था। इस ऊर्जा के
साथ ही सृष्टि के अन्य तत्वों की उत्पत्ति हुई, जैसे कि प्रकाश, ताप, वायु, जल, व खगोलीय पिंड सूर्य-पृथ्वी इत्यादि।
इस प्रकार, शब्द या
ध्वनि ऊर्जा को सृष्टि की उत्पत्ति में ऊर्जा का सबसे पहले प्रकट होने वाला रूप
माना जाता है। यह ऊर्जा ब्रह्मांड के निर्माण, पालन तथा संहार हेतु कारक मानी जाती है। सनातन धर्म में ऊर्जा को विभिन्न
रूपों एवं स्तरों में वर्णित किया गया है जैसे;
1. ब्रह्म (परम
ऊर्जा) परमात्मा
- ब्रह्म
को सनातन धर्म में सर्वोच्च ऊर्जा माना जाता है। यह अनंत,
निराकार एवं सर्वव्यापी है।
ब्रह्म ही समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति तथा लय का कारण है।
- कार्य: ब्रह्म
समस्त सृष्टि का आधार है एवं सभी ऊर्जाओं का स्रोत है।
2. शक्ति (दिव्य
ऊर्जा)
- शक्ति
को देवी के रूप में पूजा जाता है, यह सृष्टि, पालन व संहार की शक्ति है। शक्ति को परमात्मा की
सक्रिय ऊर्जा माना जाता है।
- प्रकार: शक्ति
के विभिन्न रूप हैं, जैसे
सती, पार्वती, दुर्गा,
काली,
लक्ष्मी, गायत्री, सरस्वती
आदि।
- कार्य: शक्ति
जीवन को ऊर्जा प्रदान करती है, संरक्षण करती है तथा अंत में संहार करती है।
3. प्राण (जीवन
ऊर्जा)
- प्राण शरीर में विद्यमान जीवन ऊर्जा है। यह श्वास,
चेतना एवं शारीरिक क्रियाओं
को संचालित करती है।
- प्रकार: प्राण
को पाँच उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है - प्राण,
अपान,
व्यान,
उदान तथा समान।
- कार्य: प्राण
शरीर के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करता है एवं जीवन को बनाए रखता है।
4. कुंडलिनी
(आध्यात्मिक ऊर्जा)
- कुंडलिनी
एक सुप्त ऊर्जा है जो मूलाधार चक्र में स्थित होती है। योग व ध्यान के माध्यम
से इसे जागृत किया जा सकता है।
- कार्य: कुंडलिनी
उर्जा का जागरण आध्यात्मिक जागृति तथा मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त
करता है।
5. तपस (तपस्या
की ऊर्जा)
- तपस
या तपस्या से प्राप्त ऊर्जा को अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। यह ऊर्जा
तपस्वी को दिव्य शक्तियाँ एवं गूढ़ ज्ञान प्रदान करती है।
- कार्य: तपस्या
से प्राप्त ऊर्जा व्यक्ति को आध्यात्मिक तथा भौतिक सिद्धियाँ प्रदान करती है।
6. तेजस (तेज या
प्रकाश की ऊर्जा)
- तेजस
ऊर्जा को प्रकाश और तेज के रूप में देखा जाता है। यह ऊर्जा दिव्यता,
शुद्धता एवं प्रभावशाली शक्ति
का प्रतीक है।
- कार्य: तेजस
ऊर्जा के माध्यम से व्यक्ति, आंतरिक व बाहरी रूप से प्रभावी बनता है।
7. ओजस (सूक्ष्म
ऊर्जा)
- ओजस
शरीर की सूक्ष्म ऊर्जा है जो स्वास्थ्य, बल तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखती है।
- कार्य: ओजस
शरीर को स्वस्थ व सक्रिय रखता है तथा मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान
करता है।
8. चक्र ऊर्जा
- शरीर में सात प्रमुख चक्र होते हैं, जो ऊर्जा के केंद्र हैं। ये चक्र शारीरिक,
मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करते
हैं।
- प्रकार: मूलाधार,
स्वाधिष्ठान,
मणिपुर,
अनाहत,
विशुद्धि,
आज्ञा तथा सहस्रार चक्र।
- कार्य: चक्र
ऊर्जा शरीर एवं मन के संतुलन को बनाए रखते हैं।
9. मंत्र ऊर्जा
- मंत्रों को ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। मंत्रों का जाप करने से दिव्य
ऊर्जा प्राप्त होती है।
- कार्य: मंत्र
ऊर्जा मन को शांत करती है, आध्यात्मिक उन्नति करती है तथा दिव्य शक्तियाँ प्रदान
करती है।
10. यज्ञ और हवन
की ऊर्जा
- यज्ञ व हवन से उत्पन्न ऊर्जा को पवित्र तथा शुद्ध माना जाता है। यह ऊर्जा
वातावरण को शुद्ध करती है व दिव्य आशीर्वाद प्रदान करती है।
- कार्य: यज्ञ
ऊर्जा समाज तथा पर्यावरण को लाभ पहुँचाती है तथा आध्यात्मिक उन्नति में सहायक
होती है।
निष्कर्ष:
सनातन धर्म में ऊर्जा को एक व्यापक तथा गहन अवधारणा के रूप में देखा जाता है।
यह ऊर्जा शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं ब्रह्मांडीय स्तरों पर कार्य करती है।
ऊर्जा के विभिन्न रूप तथा प्रकार व्यक्ति
को जीवन के विभिन्न पहलुओं में सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
देवी पुराण हिंदू धर्म
के प्रमुख पुराणों में से एक है, जो देवी
(शक्ति) की महिमा तथा उनके विभिन्न रूपों को विस्तार से वर्णित करता है। इस पुराण
में देवी को ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति एवं ऊर्जा के रूप में प्रस्तुत किया गया
है। देवी पुराण के अनुसार, देवी ही समस्त सृष्टि का
आधार हैं तथा वे ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन एवं संहार की शक्ति हैं। यहाँ देवी पुराण में ऊर्जा के शक्ति रूप की
व्याख्या प्रस्तुत है:
1. देवी का
सर्वोच्च रूप: आदि शक्ति
- देवी पुराण के अनुसार, देवी आदि शक्ति हैं, जो निराकार तथा सर्वव्यापी हैं। वे ही ब्रह्म (परम
सत्य) की सक्रिय ऊर्जा हैं।
- आदि शक्ति को पराशक्ति भी कहा गया है, जो समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति,
स्थिति व संहार का कारण है।
- व्याख्या: देवी
पुराण में कहा गया है कि ब्रह्म (परमात्मा) तथा शक्ति (देवी) एक ही हैं।
ब्रह्म निराकार है, जबकि
शक्ति उसकी सक्रिय एवं सृजनशील ऊर्जा है।
2. त्रिदेवों की
शक्ति: सृष्टि, स्थिति और
संहार
- देवी पुराण में देवी को त्रिदेवों (ब्रह्मा,
विष्णु व महेश) की शक्ति के
रूप में वर्णित किया गया है। वे ही इन तीनों देवताओं को उनके कार्य करने की
शक्ति प्रदान करती हैं।
- ब्रह्मा की शक्ति: सृष्टि की शक्ति (सरस्वती तथा गायत्री)
- विष्णु की शक्ति: पालन की शक्ति (महालक्ष्मी)
- शिव की शक्ति: संहार की शक्ति (पार्वती या काली)
- व्याख्या: देवी
पुराण के अनुसार, देवी
के बिना त्रिदेव अपने कार्य नहीं कर सकते। वे ही उन्हें ऊर्जा एवं शक्ति
प्रदान करती हैं।
3. देवी के
विभिन्न रूप और ऊर्जा
- देवी पुराण में देवी के विभिन्न रूपों का वर्णन है,
जो विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं
तथा शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये रूप समय,
परिस्थिति और आवश्यकता के
अनुसार प्रकट होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख देवी रूपों का वर्णन किया गया है:
- दुर्गा:
दुर्गा माँ शक्तिशाली योद्धा देवी हैं, जो
महिषासुर जैसे राक्षसों का संहार करती हैं।
- लक्ष्मी:
लक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी
हैं। उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति के लिए पूजा जाता है।
- सरस्वती: सरस्वती विद्या, कला व संगीत की देवी हैं। उन्हें ज्ञान और बुद्धि की अधिष्ठात्री
माना जाता है।
- महाकाली:
काल व संहार की देवी हैं, जो रक्तबीज, चंड-मुंड
जैसी दुष्ट शक्तियों का नाश करती हैं।
- पार्वती:
पार्वती प्रेम, विवाह व परिवार की देवी
हैं। वे शिवजी की पत्नी हैं।
- अन्नपूर्णा:
अन्नपूर्णा अन्न तथा पोषण की देवी हैं। उन्हें भोजन की देवी
माना जाता है।
- त्रिपुरा सुंदरी:
त्रिपुर सुंदरी, सौंदर्य, सम्पन्नता, बहुतिक व दैविक शक्ति की
देवी हैं।
- गायत्री देवी: वेदों की प्रमुख देवी हैं उन्हें ब्रह्मा, विष्णु,
तथा शिव की शक्ति माना जाता है। इनकी पूजा विशेष रूप से
"गायत्री मंत्र" के माध्यम से की जाती है।
- व्याख्या: देवी
के ये रूप विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं को प्रदर्शित करते हैं,
जो मनुष्य के जीवन को संचालित
करती हैं।
4. देवी की
ऊर्जा: सृष्टि का आधार
- देवी पुराण में देवी की ऊर्जा को सृष्टि का आधार बताया गया है। वे ही
पंचभूत (पृथ्वी, जल,
अग्नि,
वायु तथा आकाश) को नियंत्रित
करती हैं।
- व्याख्या: देवी
की ऊर्जा ही समस्त प्राकृतिक शक्तियों और तत्वों को संचालित करती है। वे ही
प्रकृति और जीवन का स्रोत हैं।
5. देवी की
ऊर्जा: मोक्ष का मार्ग
- देवी पुराण के अनुसार, देवी की ऊर्जा ही मनुष्य को मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग
दिखाती है। उनकी कृपा से ही व्यक्ति अज्ञानता और माया के बंधनों से मुक्त हो
सकता है।
- व्याख्या: देवी
की ऊर्जा आध्यात्मिक जागृति और मोक्ष की प्राप्ति का साधन है।
6. देवी की
ऊर्जा: भक्तों की रक्षा
- देवी पुराण में देवी को भक्तों की रक्षक और संकटों से मुक्ति दिलाने वाली
शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी ऊर्जा भक्तों को साहस,
शक्ति व सुरक्षा प्रदान करती
है।
- व्याख्या: देवी
की ऊर्जा भक्तों को आध्यात्मिक एवं भौतिक सुरक्षा प्रदान करती है।
7. देवी की
ऊर्जा: युद्ध तथा शांति
- देवी पुराण में देवी को युद्ध तथा शांति दोनों की शक्ति के रूप में
वर्णित किया गया है। वे अधर्म का नाश करती हैं एवं धर्म की स्थापना करती हैं।
- व्याख्या: देवी
की ऊर्जा संतुलन बनाए रखती है एवं अधर्म को समाप्त करती है।
निष्कर्ष:
देवी पुराण में देवी को ऊर्जा और शक्ति का सर्वोच्च रूप माना गया है। वे ही समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन एवं संहार की शक्ति हैं। देवी की ऊर्जा विभिन्न रूपों में प्रकट होती है व मनुष्य के जीवन के हर पक्ष को प्रभावित करती है। देवी पुराण के अनुसार, देवी की कृपा तथा ऊर्जा से ही मनुष्य सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। यदि मनुष्य आत्मोधार का इच्छुक है तो उसे शक्ति (देवी) के विभिन्न रूपों में से किसी भी एक रूप की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए।
Jai Mata di.
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