- 7 –
शिव महिमा
अब तक हमने सृष्टि, इसके घटक तत्वों, इसकी संचालन शक्तियों, जीव और उसे प्रभावित करने वाली माया, चेतना, आत्मा इत्यादि प्रणाली के संक्षिप्त विवरण को समझने का प्रयास किया है। यह पौराणिक सनातन दर्शन कुछ रूखा अवश्य लगता है, परन्तु, यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
वर्तमान समय में हिंदू, समाज में व्याप्त नाना प्रकार की भ्रांतियों से
प्रभावित रहते हैं। यह वैदिक ज्ञान
हमें न केवल
धार्मिक दृष्टिकोण से
समृद्ध करता है, अपितु, हमें
जीवन के गहन
सत्य व दार्शनिक
तथ्यों से भी
परिचित कराता है।
आवश्यकता अनुसार, भविष्य में हम
इन विषयों को
अधिक विस्तार से
समझने का प्रयास
करेंगे।तो पुनः आदि पुरुष - शिवजी की ओर
लौटते हैं, उनकी
महिमा तथा आदि
शक्ति के साथ
उनकी भूमिका पर
ध्यान केंद्रित करते
हैं,
जो न केवल
धार्मिक दृष्टिकोण से
महत्वपूर्ण है, अपितु जीवन
के
आध्यात्मिक दर्शन को भी गहराई
प्रदान करती है।
वेदों में वर्णित ब्रह्म
वाक्य के अनुसार, शिवजी
के महात्म्य का
पूर्णतया वर्णन कोई
नहीं कर सकता।
अठारह पुराणों में
आदि पुरुष भगवान् शिव की महिमा
का गान किया
गया है। जो मनुष्य "शिव" इस दो
अक्षर के मंत्र
का उच्चारण करेंगे, उन्हें
स्वर्ग एवं
मोक्ष दोनों प्राप्त
होंगे, इसमें तनिक भी संदेह
नहीं है। शिवजी
की महिमा अनंत
है तथा उनका
ध्यान,
जप व पूजन करने से
असीमित लाभ प्राप्त
होते हैं, यह
मान्यता हजारों वर्षों
से चली आ
रही है। धार्मिक ग्रन्थों में इसका
व्यापक उल्लेख मिलता
है तथा इसी
कारण से इनको
महादेव कहते हुए
सार्वभौमिक रूप में
सर्वाधिक पूजा जाता
है। महादेव शिव ने ही
प्रत्येक देवता, ज्ञान,
कला, कौशल, विधि-विधान, तंत्र,
मन्त्र, यंत्र इत्यादि
की रचना की
है एवं सर्व
के कल्याण हेतु
देव दानव तथा
मानव को प्रदान
किया है। सृष्टि
का आरम्भ उनसे
हुआ तथा अंत
भी उनमे ही विलीन होकर होगा।
महादेव शिवजी का पूजन
निराकार रूप में
मानसिक ध्यान द्वारा
किया जा सकता
है,
तथा साकार रूप में
किसी भी अनगढ़
पत्थर को उनका
लिंग अर्थात “चिन्ह” मानकर बिना
किसी सामग्री के
या किसी भी
सामग्री से सात्विक
अथवा तांत्रिक विधिनुसार
किया जा सकता
है। यह निराकार ध्यान एक
गहरे मानसिक और
आध्यात्मिक अभ्यास का
हिस्सा है, जिसमें ध्यान
को केंद्रित करके
शिवजी की उपस्थिति
का अनुभव किया
जाता है। वहीं, साकार
रूप में शिवलिंग
की पूजा विभिन्न
रूपों में की
जा सकती है, जो
भक्ति व
श्रद्धा का प्रतीक
है। चाहे पूजा
में सामग्री का
उपयोग हो या
नहीं, वे सब स्वीकार करते है क्योंकि उनको समर्पित भक्त की भावना का मुख्य
उद्देश्य उनसे एकाकार होना है। “शिवोहम” मन्त्र अर्थात मैं ही शिव हूँ इसी भावना को
प्रदर्शित करता है।
इसके अतिरिक्त, शिव को भोला
भंडारी मानकर सामान्य
भक्त सीधे प्राकृत
भाषा में अपनी
कामनाओं की पूर्ति
के लिए भी
उनसे प्रार्थना कर
सकते हैं। नाथ
सम्प्रदाय के गुरु
गोरखनाथ द्वारा प्रसारित
सहज एवं
सरल भाषा के
शाबर मंत्रों का
प्रयोग इसका प्रत्यक्ष
प्रमाण है। इन
मंत्रों के माध्यम
से भक्त ईश्वरीय
कृपा को प्राप्त
करके अपने मन्तव्यों को, कामनाओं को
पूर्ण करने का
प्रयास करते हैं, सनातन धर्म
में प्रत्येक
विधि-विधान तथा भक्ति की सफलता केवल
उनकी की
कृपा से ही सम्भव है।
मानव के कल्याण
हेतु, ऋषियों
ने अपनी ज्ञान-दृष्टि से विभिन्न
वैदिक मन्त्रों का
हमें उपदेश दिया
है। इनका प्रयोग
अथवा अनुष्ठान बिना
किसी विशेष प्रयोजन
के सिद्धि की
भावना रखे, निष्काम भाव से
ही करना चाहिए।
निष्काम धर्माचरण से
तथा आत्मज्ञान के
प्रभाव से पूर्व
कर्मों के संचित्
पाप कर्म नष्ट
हो जाते हैं
एवं मनुष्य दुःखों
से निवृत्ति पाकर
मोक्ष को प्राप्त
कर लेता है।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
Har har Mahadev.
जवाब देंहटाएं