ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 जनवरी 2025

मंत्र

 -17-

'मंत्र'


यहाँ तक के विचार मंथन द्वारा ज्ञात हुआ है कि, जीवन में आने वाले विघ्न व कष्ट, मनुष्य के कर्मों से गहरे रूप में जुड़े होते हैं तथा उनकी निवृत्ति हेतु विशेष प्रयासों की आवश्यकता होती है। सामान्यतः: ईश्वर से साकार अथवा निराकार रूप में सम्बन्ध स्थापित करना ही इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य होता है। वैदिक अथवा तांत्रिक, कोई मार्ग हो इनमें मन्त्रों की अति महत्वपूर्ण भूमिका है।

 

सनातन धर्म का आधार ऋषियों द्वारा प्रदान किए गए संस्कृत के श्लोकों अथवा मंत्रों में निहित मूल्यों में है। मंत्र शक्तिशाली साधन हैं जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अवशोषित करते है एवं मनुष्य में नवीन ऊर्जा, चेतना के विकास, मानसिक अवस्था के रूपांतरण में माध्यम मानव जीवन की प्रगति में योगदान करते हैं।

 

'मंत्र' शब्द का अर्थ है 'मन' 'माध्यम'। अंतरिक्ष में स्थित प्रत्येक खगोलीय पिंड अपनी विशिष्ट एवं विविध आवृति की तरंगों के कंपनों से निरंतर गतिशील रहते हैं, अतः ज्योतिषशास्त्र में वर्णित प्रत्येक ग्रह के बीजमंत्र उपलब्ध हैं। इसी प्रकार, प्रत्येक देवता भी, ऊर्जा का एक स्रोत हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट कंपन आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) होती है जिनसे जुड़ने हेतु विविध मंत्रों की रचना की गई है।

 

प्रत्येक पौराणिक मंत्र, उच्चारण की ध्वनि तरंगो के माध्यम से मानव शरीर में एक विशेष आवृत्ति का कंपन उत्पन्न करता है। जिससे शरीर की ग्रंथियों में, विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों से बने, ग्रंथिरसों का उत्पादन तथा सूक्ष्म मात्रा में अंत:स्राव होता है। तदुपरांत, हमारे अंग आवश्यक मात्रा में विद्युतीय ऊर्जा उत्पन्न कर लक्षित कार्य पूर्ण करते हैं। मंत्रों का निर्माण एवं प्रयोग एक अत्यंत उन्नत प्राचीन विज्ञान है, जिसे वर्तमान वैज्ञानिक पूर्णरूपेण समझने में असमर्थ हैं।

 

इसी प्रकार, योगाभ्यास के विभिन्न आसन व हस्त मुद्राएँ भी शरीर में एक शक्तिशाली रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण कर स्वस्थ और निरोगी काया सुनिश्चित करती हैं।

 

प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में जब किसी वैदिक मंत्र का त्रुटिहीन शुद्ध उच्चारण, निर्धारित मुद्रा के प्रदर्शन सहित, उचित आसन में बैठकर, निश्चित स्वर के स्तर तथा निर्दिष्ट जप संख्या के अनुसार, विधिपूर्वक एक पूर्वनिर्धारित कालावधि हेतु किया जाता है, तो वह वैदिक मन्त्र जाग्रत हो जाता है। अर्थात उसमें संकल्पित कार्य करने की ऊर्जा शक्ति का संचार हो जाता है। आगम या निगम में वर्णित प्रत्येक साधना का मूल सिद्धांत यही है, जिसके प्रयोग से मनवांछित भौतिक तथा आध्यात्मिक इच्छापूर्ति होती है।

 

ऐसी कोई कठिनाई, कोई विपत्ति व कोई पीड़ा नहीं है जिसका निवारण मंत्र के द्वारा नहीं हो सकता तथा कोई ऐसा लाभ नहीं है जिसकी प्राप्ति मंत्र के द्वारा सम्भव न हो। मन्त्रों के एक व्यवस्थित समूह को स्त्रोत्र कहा गया जिनका प्रतिदिन पाठ अत्यंत लाभदायक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने इष्टदेव अथवा किसी भी देवी देवता की आराधना हेतु  इनका यथासम्भव उपयोग अवश्य करना चाहिए।

 

संस्कृत भाषा का घटता उपयोग, अशुद्ध हिंदी, विदेशी संस्कृति और पश्चिमी कुरीतियों का बढ़ता प्रभाव, हमारे वैदिक सनातन धर्म के पालन को, कठिन बना रहा है, परिणामस्वरूप भारतीय समाज पतन को अग्रसर है।

 

संस्कृत न केवल एक प्राचीन भाषा है, अपितु, वैदिक ज्ञान के भंडार को समझने की कुंजी भी है, जो आध्यात्मिक और भौतिक विकास दोनों में सहायक हो सकता है। संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान हेतु सामूहिक प्रयास द्वारा, वैदिक ज्ञान के माध्यम से समस्त मानवता का समृद्धि और विकास संभव है।

 

मेरा प्रयास रहा है कि, इस श्रृंखला में यथासंभव भाषा की शुद्धता बनी रहे, तथापि, असावधानीवश हुई त्रुटियों हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ।

 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें