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रविवार, 2 फ़रवरी 2025

सृष्टि के सृजन का उद्देश्य क्या है

 

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सृष्टि के सृजन का उद्देश्य क्या है ?

 सनातन को ही हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, इसमें विश्व की प्राचीनतम परम्पराएं, अनेक दर्शन, विश्वास तथा अभ्यास समाहित हैं। सनातन के सिद्धांत व तत्त्व हैं:

1.       धर्म: यह कर्तव्य, नैतिकता तथा आदर्श पर आधारित आदर्श जीवन प्रणाली है।

2.       कर्म: यह कारण एवं प्रभाव का नियम है, जिसके अनुसार प्रत्येक कर्म का परिणाम अवश्य प्राप्त होता है।

3.       संसार: यह जन्म, मृत्यु तथा पुनर्जन्म का चक्र है।

4.       मोक्ष: यह संसार के चक्र से मुक्ति है एवं हमारा अंतिम आध्यात्मिक लक्ष्य है।

5.       आत्मा: यह शाश्वत, सत्य, अनश्वर ईश्वर का एक छोटा अंश है तथा शरीर से भिन्न है।

6.       ब्रह्म: ईश्वर, अंतिम सत्य या सार्वभौमिक आत्मा अर्थात परमात्मा है।

7.       वर्ण: यह कर्म पर आधारित समाज के वर्गीकरण की प्रणाली है, जिससे संसार सुचारू रूप से चलता रहे।

8.       योग: यह आध्यात्मिक ज्ञान व मुक्ति का मार्ग है इसके चार विभाग हैं :- कर्मयोग, ज्ञानयोगराजयोग तथा भक्ति योग।

 

अब एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि, ईश्वर द्वारा सृष्टि के सृजन का मूल उद्देश्य क्या है?

 

ईश्वर ने यह सृष्टि क्यों बनाई? यह एक जटिल एवं गहन दार्शनिक प्रश्न है। इसका उत्तर किसी एक ग्रंथ में स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है, परन्तु, अनेक तथ्य हैं, जिनके आधार पर ईश्वर द्वारा सृष्टि निर्माण का उद्देश्य प्रकट होता है, जैसे ;-


·      सनातन ग्रंथ, सृष्टि को परमात्मा की माया से उत्पन्न दिव्य क्रीडा की संज्ञा प्रदान करते हैं। माया की यह लीला उनकी रचनात्मकता व आनंद का प्रकटीकरण है। इसे एक बालक की जिज्ञासा के समान भी वर्णित किया गया है जो खेल-खेल में अपने मानसिक अनुभव को बढ़ाता है।

·      प्रत्येक जीव में आत्मा का निवास है, यह परमात्मा का एक छोटा सा अंश है जो उन्होंने प्रत्येक जीव को दिया है। वे इन अंशों के माध्यम से सृष्टि के हर कोने का अनुभव प्राप्त कर प्रसन्न होते हैं अतः उन्हें परमानंद भी कहा गया है।

·      ईश्वर का स्वभाव अत्यंत सरल है, इसीलिए ‘जीव’ भी जन्म से सरल अर्थात भोला होता है पर धीरे धीरे,  संसार की माया इस भोले शिशु के स्वभाव को बदल देती है।

·      देवी महा भागवत अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्मांड, शक्ति (उर्जा) व शिव (पदार्थ) के विभिन्न संयोजनों का परिणाम है। उर्जा का केवल स्वरूप बदलता है यह नष्ट नहीं होती यही “आत्मा” का स्वरूप है।

·      सनातन ग्रंथों में सत, तम एवं रज इन तीनों गुणों का महत्वपूर्ण स्थान है। इनको सृष्टि का कारक तत्व वर्णित किया गया है तथा सम्पूर्ण प्रकृति का संचालन इन से ही होता है।

·      पुराणों के अनुसार इस सृष्टि की उत्पत्ति महादेव से हुई है तथा उनका स्वभाव अत्यधिक सरल है। वे देव, मानव तथा दानव सभी के प्रति समभाव धारण करते हैं तथा उनकी भक्ति भावना को स्वीकार करके उदार हृदय से उनकी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं तभी तो भक्त उन्हें प्रेम-वश “भोला” भी पुकारते हैं। संक्षेप में, पूर्ण परमात्मा के स्वभाव में भोलापन अर्थात सरलता दिखती है।

·  पुराणों के अनुसार यह सृष्टि ईश्वर की प्रथम रचना नहीं है, इसके पूर्व वे चौंतीस सृष्टियों को रच तथा नष्ट कर चुके हैं। यही श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 8 के श्लोक 17 में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि यह सृष्टि अनेक बार उत्पन्न एवं नष्ट हो चुकी है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि ब्रह्मा का एक दिन और रात मिलकर कुल 8.64 अरब वर्ष होते हैं, जिसके अंत में सृष्टि का संहार तथा पुनः निर्माण होता है। अनन्त काल से सृष्टि के निर्माण तथा विनाश का चक्र गतिमान है।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार:-

·      प्रत्येक ज्ञात पदार्थ अणुओं से बना होता है, जो कि परमाणुओं के समूह हैं। इस प्रकार, सृष्टि की सबसे सूक्ष्म इकाई परमाणु है। परमाणु में तीन मुख्य अवयव होते हैं: इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन, जो ऊर्जा के प्रभाव से आपस में जुड़े होते हैं, वस्तुतः परमाणु ऊर्जा से ही निर्मित हैं।

·      जीवन की उत्पत्ति हेतु, ऊर्जा के विभिन्न रूपों जैसे ऊष्मा, विद्युत, विकिरण, व गुरुत्वाकर्षण बल की आवश्यकता थी। जिससे  पृथ्वी पर जीवन, एककोशिकीय जीव के रूप में उत्पन्न हुआ तदुपरांत उनसे अधिक उत्कृष्ट प्राणी अस्तित्व में आये तथा पृथ्वी पर परिस्थितियां होने पर भी, जीवन बार-बार उभरता व समाप्त होता रहा है। 

  ·    डायनासोर के बाद पृथ्वी पर स्तनधारियों की उत्पत्ति तथा मानव के क्रमिक विकास से सम्बन्धित धारणाओं के अनुसार भविष्य में मनुष्य भी विलुप्त हो जायेंगे तथा एक अधिक बुद्धिमान व समर्थ जीवन के यहाँ अस्तित्व में आने की प्रबल सम्भावना है।

जब हम इन सभी त्तथ्यों पर विचार करते हैं तो समझ आता है कि, परमात्मा ने एक बच्चे के खेल की तरह, अपनी माया से वर्तमान सृष्टि का निर्माण किया है तथा उनका उद्देश्य सभी जीवों में स्थित अपने अंशों अर्थात आत्मा के माध्यम से, सृष्टि के सभी आयामों का अनुभव प्राप्त करना है। जिससे, वे इससे उत्कृष्ट अगली सृष्टि की रचना कर सकें। इसका प्रमाण, इस संसार में जीवन के विकास की प्रक्रिया के रूप में हमारे सामने है

हमारे सनातन ग्रन्थों में वह सभी तथ्य वर्णित हैं जिन्हें, आधुनिक विज्ञान अपने आविष्कारों तथा गणनाओं के माध्यम से पुन: समझने करने का प्रयास कर रहा है। जैसे, विज्ञान जिन्हें परमाणु के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहता है, सनातन उनको ही सत, तम एवं रज बताता है तथा परमात्मा एक परम ऊर्जा है जिसके अंश, को आत्मा कहा गया है। इसके अतिरिक्त, सनातन ग्रन्थों में उन विषयों को भी बताया गया है जिनको, आधुनिक विज्ञान अभी तक समझ नहीं पाया है


 

हरि ॐ शांति, शांति, शांति  




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