-14-
ज्योतिषशास्त्र
अब तक हमें मानव जीवन अंतिम लक्ष्य, उसकी प्राप्ति के मार्गों उनकी कार्य विधियों इत्यादि का आंशिक ज्ञान हो गया तथा यह भी ज्ञात हुआ कि मनुष्य निर्लिप्त भाव से कर्म करने से पंच विकारों से अपनी यथा सम्भव रक्षा भी कर सकता है परन्तु इसे क्रियान्वित करना कैसे सम्भव हो ?
हम जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य आजीवन कर्म करता रहता है जो सत्कर्म एवं
दुष्कर्मों की श्रेणियों में विभाजित हैं साथ ही प्राणी पाप एवं पुण्य अर्जित करता
रहता है तथा सुख एवं दुःख की अनुभूतियों को भी भोगता जाता है। कदाचित ही कोई ऐसा
मनुष्य होगा जो एक सुखी जीवन की कामना न करता हो परन्तु उसे इस मृत्युलोक में अपना
समय तो कर्मफल अनुसार व्यतीत करना ही पड़ता है। अथर्ववेद में मानव की इसी भावना की
पूर्ति हेतु एक अन्य मार्ग भी प्रशस्त किया गया जिसे ज्योतिष शास्त्र के रूप में
जाना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र मौलिक रूप से ग्रहों, उपग्रहों, तारा
समूहों (नक्षत्रों), धूमकेतु व अन्तरिक्ष में स्थित अन्य पिंडों इत्यादि का गणितीय
गणना पर आधारित एक अध्ययन है। ज्योतिष शास्त्र हमें खगोलीय घटनाओं के बारे में तो
जानकारी देता ही है, साथ ही उनके भविष्य में हमारे ऊपर होने
वाले प्रभावों को भी बताता है। इस शास्त्र में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विस्तार की
गति, प्रकाश, काल इत्यादि की वैज्ञानिक विवेचना की गयी है।
मुखत: इसके दो भाग हैं एक भाग के अंतर्गत खगोलीय पिंडों से सम्बन्धित गणितीय सूत्र
उपलब्ध हैं इसे गणित ज्योतिष तथा द्वितीय भाग जिसमें खगोलीय पिंडों से सम्बन्धित
प्रभावों का अध्ययन है जिसे फलित ज्योतिष कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र मूलतः प्रकाश पर आधारित विज्ञान है तथा ग्रहों की स्थितियों
तथा उसके मानव पर प्रभावों का अध्ययन प्रणाली है, अतः इसमें मानव द्वारा ज्ञात
प्रकाश के सबसे वृहद स्रोत सूर्य को प्रथम स्थान प्राप्त है तदुपरांत यह घटते क्रम
अनुसार चंद्रमा इत्यादि खगोलीय पिंडो का वर्गीकरण करता है। इसमें आठ ग्रहों की
संकल्पना हुई जो, सूर्य, चन्द्र,
मंगल, बुध, ब्रहस्पति, शुक्र तथा शनि इसके
अतिरिक्त दो अन्य काल्पनिक छायाग्रह राहू एवं केतु भी हैं । जिनमें मानव के मानसिक
अज्ञान रूपी अन्धकार को राहू तथा मानसिक भ्रम रूपी अस्पष्टता को केतु दर्शाया जाता
है। इन ग्रहों के भ्रमण इत्यादि के अनुसार फलित कथन किया जाता है।
सम्पूर्ण दृश्य आकाश के तारा समूहों को बारह भागों में विभाजित करके 12 राशियों
की परिकल्पना की गयी तथा आठ ज्योतिषीय ग्रहों को इनका स्वामी माना गया। वैदिक
ज्योतिष चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा में लगने वाले 28 दिवस की अवधि के आधार
पर एक वर्ष के मासों को संकल्पित करता है जिससे 13 मास का वर्ष होता है । पृथ्वी
अंडाकार पथ में सूर्य की परिक्रमा करती है, जिससे सूर्य के
प्रकाश का कोण बदलता रहता है और छ: ऋतुओं की उत्पत्ति होती है, जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। ज्योतिष शास्त्र भी इसी प्रकार अन्य
ग्रहों से प्राप्त होने वाले सूर्य के परिवर्तित प्रकाश की मात्रा, उनके कोण और प्राप्त ऊर्जा की गणना के आधार पर किसी व्यक्ति के जीवन में
भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान करता है।
सामान्यतः इसे भविष्य ज्ञात करने का साधन माना जाता है परन्तु, इसका
मूल उद्देश्य भी आस्था एवं विश्वास के विकास द्वारा मानव के जीवन का उद्धार करना
ही है। इसमें लगभग सभी आगम तथा निगम के सिद्धांतों का प्रयोग समाहित है। अतः यह
असीमित ज्ञान का भंडार है भरसक प्रयत्नों से भी इसके सम्पूर्ण आयामों तथा गूढ़
दर्शन को आत्मसात करना दुष्कर है। शेष भविष्य में हरि ॐ ।
ॐ शान्तिः
शान्तिः शान्तिः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें