ब्रह्मांड की उत्पत्ति
सनातन
धर्म के मूल वेद का गूढ़ ज्ञान ब्रह्माजी ने, अपने सभी चार मुखों से एक अरब श्लोकों
द्वारा, जिनको ऋचा कहा जाता है के रूप में प्रकट किया था “पुराणं सर्वशास्त्राणां
प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम्”'। पुरातन ऋषियों की बुद्धि अत्यंत तीव्र तथा स्मृति विस्तृत थी तथा यह
ज्ञान उनको कंठस्थ था अतः उन्होंने इन ऋचाओं को उपदेश के माध्यम से अपने शिष्यों
को हस्तांतरित किया। महर्षि व्यास जी ने इस ज्ञान को लिखित रूप प्रदान किया।
महर्षि व्यास
त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म
क्षीण हो जायेगा। धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्य हीन व अल्पायु हो जायेगा।
एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ्य से बाहर हो जायेगा। फलतः महर्षि
व्यास ने मूल वेद की मीमांसा से उसे एक लाख ऋचाओं में सीमित करके इनका भी चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि, कम बुद्धि एवं कम स्मरण
शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने इनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का उन्होंने क्रमशः अपने शिष्यों पैल, जैमिन, वैशम्पायन एवं सुमन्तुमुनि को उपदेश प्रदान किया।
वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास जी ने पाँचवें वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेदों के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। उन्होंने यह अपने शिष्य रोम हर्षण को प्रदान किया यही 108 उपनिषदों से जाना जाता है। कालान्तर में व्यास जी के शिष्यों ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ व उप शाखाएँ बना दीं। क्योंकि इन सब ने यह ज्ञान श्रवण द्वारा प्राप्त किया था अत: ये सब ऋषि “श्रुत” अर्थात 'जिन्होंने सुना' कहलाये जिसका अपभ्रंश रूप आज भी प्रत्येक धार्मिक कथा में श्री सूत उवाच अर्थात 'सूत जी बोले' इत्यादि, के रूप में पाया जाता है।
अभी तक हमने वैदिक इतिहास की विवेचना की है अब आगे सृष्टि की उत्पत्ति; पौराणिक ग्रन्थों में सृष्टि की उत्पत्ति का विवरण प्राप्त होता है। जिसके अनुसार जब कुछ भी नहीं था तब शून्य था, अन्धकार था तथा समय (काल) भी नहीं था। तभी एकाएक एक बिंदु उत्पन्न हुआ, यह इसी प्रकार कब तक यथावत रहा इसकी गणना नहीं की जा सकती क्योंकि तब तक समय भी नहीं था तदुपरांत यह बिंदु रुपी पिंड एकाएक एक उच्च स्वर के साथ दो भागों में विभक्त हो गया यहाँ पर ब्रह्मांड का प्रथम नाद “ॐ“ उत्पन्न हुआ। यहीं से काल अथवा समय का भी जन्म हुआ। जब भी हम ॐ का उच्चारण करते हैं तो स्रष्टि के जन्म-काल से आध्यात्मिक रूप से जुड़ जाते है, यही कारण है कि प्रत्येक वैदिक मन्त्र ॐ से आरम्भ होता है।
उस बिंदु अथवा पिंड के जो दो भाग हुए वे महाकाल शिव अर्थात “पदार्थ” एवं महाकाली अर्थात “उर्जा” से जाने जाते हैं। काल की उत्पत्ति से ही इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना का आरम्भ हुआ। यह ब्रह्मांड पदार्थ एवं उर्जा के विभिन्न संयोजनों से ही निर्मित है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने इसी ब्रह्मांडीय घटना को हमारे धार्मिक ग्रन्थों से ग्रहण करके 'महाविस्फोट' अथवा 'बिग बेंग' की अवधारणा के रूप में प्रतिपादित किया है।
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