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मंगलवार, 28 जनवरी 2025

मृत्यु एवं पुनर्जन्म-2

 

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 मृत्यु एवं पुनर्जन्म-2


हमें ज्ञात है कि गरुड़ पुराण के अनुसार मृतात्मा 13 दिनों तक भूलोक में परिवारजनों के समीप रहती है। अतः सनातन धर्मी परिवारजनों द्वारा मृतात्मा हेतु सद्गति की कामना से “गरुड़ पुराण” के पाठ का आयोजन किया जाता है, जिससे मृतात्मा को मोह से मुक्ति व शान्तिः तथा श्रोताओं को जीवन में सत्कर्मों के पालन की प्रेरणा प्राप्ति होती है।

तदुपरांत, मृतात्मा यमलोक की ओर प्रस्थान करता है, यह यमलोक यात्रा चालीस दिवस की अवधि में पूर्ण होती है। इस यात्रा के तीन मार्ग हैं व यमदूत मृतक के कर्मो के अनुसार, किसी एक मार्ग का चयन करके, उसे यमलोक ले जाते हैं। यात्रा मार्ग के मध्य में वैतरणी नामक रक्त, विष्ठा व पीप से भरी एक दुर्गन्धयुक्त नदी आती है इसके भीतर विभिन्न भयंकर जहरीले जीव, कृमि इत्यादि तथा इसके तटों पर भी कष्टदायक पशु-पक्षी निवास करते हैं अतएव दुरात्मा इसे अत्यंत कष्टप्रद रूप से तैर कर तथा गौ दानी धर्मात्मा यमदूतों द्वारा चलित नाव से पार करते हैं। यम पुरी के निकट “पुष्पोदक” नामक पवित्र नदी प्रवाहित है तथा इसके तटों पर छायादार वटवृक्ष हैं, मृतात्मा यहाँ परिजनों द्वारा प्रथम मासिक श्राद्ध में अर्पित पिंड तथा तर्पण के जल प्राप्ति हेतु अल्पावधि विश्राम करती है।

भूलोक के ऊपर दक्षिण दिशा में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक स्थित है, जिसके स्वामी यमराज हैं। भगवान सूर्यदेव उनके पिता तथा देवी सरणयू या संज्ञा उनकी माता हैं। भगवान शनिदेव उनके अनुज भ्राता एवं  यमुना उनकी बहन हैं। यमराज का प्रिय वाहन महिष है तथा वे गदा एवं पाश धारण करते हैं। उनके शरीर की कान्ति हरी है, वे रक्ताम्बर धारण करते हैं। यमराज अपनी यमपुरी नगरी में कालित्री नामक महल में विचारभू नामक सिंहासन पर विराजमान रहते हैं। यमराज के दूतों को यमदूत कहा जाता है, जिनमें प्रमुख महाण्ड व कालपुरुष हैं। धर्मध्वज एवं वैध्यत यमराज के महल के द्वारपाल हैं तथा इनके साथ दो अत्यंत विशाल कुत्ते भी हैं।

यमलोक में ही ब्रह्मापुत्र भगवान चित्रगुप्त का निवास है जिनकी “अग्रसंधानी” नामक बही में प्रत्येक जातक के पाप-पुण्य कर्मों का लेखा-जोखा संकलित है। चित्रगुप्त जी बही के निरीक्षण पश्चात मुतात्माओं को चार श्रेणियों में विभक्त कर, अपने महल से बीस योजन दूर स्थित यमराज के महल में, अंतिम निर्णय हेतु प्रेषित कर देते हैं। कालित्री महल में प्रवेश हेतु चार दिशाओं में चार द्वार हैं जिनमें श्रेणीनुसार; दक्षिण दिशा से पापत्माओं, पश्चिम दिशा से पुण्यात्माओं, उत्तर दिशा से धर्मात्माओं तथा पूर्व दिशा से देवात्माओं को प्रवेश की अनुमति प्राप्त होती है। दक्षिणी द्वार को नर्क तथा पूर्वी द्वार को स्वर्ग का द्वार भी कहा गया है।

भगवान यमराज, पापियों को यमराज स्वरूप में तथा पुण्यात्माओं को धर्मराज स्वरूप में दर्शन देते हैं तथा भगवान चित्रगुप्त के विश्लेषण के आधार पर, मृतात्मा को स्वर्गलोक अथवा नर्क के भोगने की अवधि तथा विधि का निर्णय लेते हैं। यह निश्चित अवधि पूर्ण होने के पश्चात जिन आत्माओं का चक्र भोग शेष रहता है उनका भूलोक पर पुनर्जन्म होता है, यह पुनर्जन्म का चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो जाती तथा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।

इस प्रकार गरुड़ पुराण, लौकिक जीवन तथा मृत्योपरांत पारलौकिक लोकों के रहस्यों विस्तृत वर्णन करता है। यह हमें अपने उचित-अनुचित कर्मों के महत्व को समझने तथा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। प्रत्येक सनातन धर्मी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जीवन अवधि में कम से कम एक बार इसका अध्ययन अथवा श्रवण अवश्य करें।        

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः


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