अनुपम ज्ञान गंगा
आत्मोधार का मार्ग
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सोमवार, 8 सितंबर 2025
रविवार, 3 अगस्त 2025
बुधवार, 30 जुलाई 2025
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025
रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष ।
32
रुद्राक्ष
एक समय, भगवान शिवजी ने सृष्टि
के कल्याण एवं संतुलन हेतु गहन तपस्या करने का निर्णय लिया। उन्होंने हिमालय की ऊँची
चोटियों पर एकांत स्थान चुना तथा वहाँ बैठकर आचारज जप शुरू किया। शिवजी द्वारा किया
गया आचारज जप एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक क्रिया है, जो उनकी तपस्या व ध्यान का प्रतीक है। आचारज जप का अर्थ है
"गुरु के मार्गदर्शन में मंत्र जप करना" या "आचार्य की तरह तपस्या करना"।
शिवजी ने यह जप अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने और सृष्टि के कल्याण के लिए
किया था। वे सृष्टि के संरक्षक एवं संहारक हैं, व उन्होंने यह जप सृष्टि के
कल्याण तथा संतुलन के लिए किया। इस जप के माध्यम से शिवजी ने यह संदेश दिया कि ज्ञान
और तपस्या के बिना मोक्ष प्राप्त करना असंभव है। शिवजी ने यह जप न केवल अपने लिए, बल्कि पूरी सृष्टि के कल्याण
के लिए किया, जो उनकी करुणा तथा दया का
प्रतीक है।
यह जप अत्यधिक कठिन एवं अनुशासित था, जिसमें शिवजी ने "ॐ नमः शिवाय" जैसे मंत्रों का उच्चारण किया तथा गहन ध्यान में लीन हो गए। जब शिवजी तपस्या में लीन थे, तो माँ शक्ति (देवी पार्वती) ने उनके पास आकर उनकी तपस्या में सहयोग दिया। माँ शक्ति ने शिवजी के साथ बैठकर ध्यान किया व उनकी असीमित ऊर्जा को संतुलित किया। वे शिवजी की तपस्या की रक्षा करने लगीं, ताकि कोई भी बाहरी शक्ति उनके ध्यान में बाधा न डाल सके।
माँ शक्ति ने शिवजी को यह समझाया कि तपस्या व जप केवल एकांत में ही नहीं, बल्कि संतुलन तथा सहयोग से भी पूर्ण होता है। उन्होंने शिवजी के साथ मिलकर सृष्टि के कल्याण के लिए ऊर्जा का संचार किया। शिवजी एवं माँ शक्ति की इस तपस्या अवधि में, उनमें पारस्परिक घन आध्यात्मिक संबंध स्थापित हुआ। शिवजी ने माँ शक्ति को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया तथा यह प्रकट किया कि शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। शिवजी की तपस्या एवं माँ शक्ति की ऊर्जा के संयोग से ब्रह्मांड में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हुआ।
शिवजी की तपस्या इतनी तीव्र
थी कि उनके शरीर से तेज और ऊर्जा का प्रवाह होने लगा। यह ऊर्जा इतनी शक्तिशाली थी कि
पूरा ब्रह्मांड उससे प्रभावित हो गया। देवता, ऋषि और सभी प्राणी इस ऊर्जा से आश्चर्यचकित हो गए। भगवान
शिव की तपस्या के फलस्वरूप उर्जा से उनका शरीर तप्त हो गया व उनकी आँखों से अश्रु टपक
गये तथा पृथ्वी पर आ गिरे, जहाँ-जहाँ ये गिरे, वहाँ-वहाँ रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गए। रुद्राक्ष की उत्पत्ति की
यह कथा शिवजी की करुणा तथा दया को दर्शाती है।
"रुद्र" शब्द का अर्थ है शिव, और "अक्ष" का अर्थ है आँसू। इस प्रकार, रुद्राक्ष का अर्थ है "शिव के अश्रु"। यह दो प्रकार के थे: सात्विक: ये आँसू शिवजी की करुणा और दया से उत्पन्न हुए थे। इनसे उच्च गुणवत्ता वाले रुद्राक्ष उत्पन्न हुए, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम माने जाते हैं।
तामसिक: ये आँसू शिवजी के क्रोध और तपस्या की तीव्रता से उत्पन्न हुए थे। इनसे निम्न गुणवत्ता वाले काले रंग के रुद्राक्ष उत्पन्न हुए, जो कम प्रभावशाली माने जाते हैं। रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। शिवजी को रुद्राक्ष इसलिए प्रिय है क्योंकि यह उनके नेत्रों से उत्पन्न हुआ था। इसे धारण करने से व्यक्ति को शिव की कृपा प्राप्त होती है और यह आध्यात्मिक उन्नति में सहायक माना जाता है। रुद्राक्ष को धारण करने से मन की शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। रुद्राक्ष के विभिन्न मुख होते हैं, और प्रत्येक मुख का अलग-अलग महत्व एवं प्रभाव माना जाता है। इसे धारण करने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
रुद्राक्ष, एलियोकार्पस गैनिट्रस
नामक वृक्ष से प्राप्त बीज होता है। यह वृक्ष मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र, नेपाल, इंडोनेशिया और भारत के कुछ
स्थानों में पाया जाता है। रुद्राक्ष को सनातन में अति-पवित्र तथा आध्यात्मिक और चिकित्सकीय
गुणों से युक्त माना जाता है। रुद्राक्ष एक से लेकर इक्कीस मुखी होते हैं।
प्रत्येक मुखी रुद्राक्ष का अपना विशेष महत्व तथा प्रभाव है। यहाँ विभिन्न मुखी
रुद्राक्षों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
- एक मुखी रुद्राक्ष: भगवान
शिव का प्रतिनिधित्व करता है तथा मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
- दो मुखी रुद्राक्ष: अर्धनारीश्वर
का प्रतीक, सद्भाव तथा एकता को बढ़ावा देता है।
- तीन मुखी रुद्राक्ष: अग्नि
देवता का प्रतिनिधित्व, बाधाओं को दूर करता है।
- चार मुखी रुद्राक्ष: ब्रह्मा
जी का प्रतीक, ज्ञान तथा बुद्धि प्रदान करता है।
- पांच मुखी रुद्राक्ष: श्रीहरि
विष्णु अथवा कालाग्नि रुद्र का प्रतिनिधित्व, सामान्य
स्वास्थ्य तथा शांति के लिए। यह सर्वाधिक मात्र में पाया जाता है तथा लगभग सभी
आकारों में उपलब्ध है
- छह मुखी रुद्राक्ष: कार्तिकेय
का प्रतीक, ज्ञान तथा बुद्धि को बढ़ाता है।
- सात मुखी रुद्राक्ष: लक्ष्मी
का प्रतिनिधित्व, धन तथा समृद्धि प्रदान करता है।
- आठ मुखी रुद्राक्ष: गणेश
का प्रतीक, बाधाओं को दूर करता है।
- नौ मुखी रुद्राक्ष: दुर्गा
का प्रतिनिधित्व, शक्ति तथा साहस प्रदान करता है।
- दस मुखी रुद्राक्ष: विष्णु
का प्रतीक, सुरक्षा तथा शांति प्रदान करता है।
- ग्यारह मुखी रुद्राक्ष: हनुमान
का प्रतिनिधित्व, साहस तथा शक्ति प्रदान करता है।
- बारह मुखी रुद्राक्ष: सूर्य
देव का प्रतीक, ऊर्जा तथा जीवन शक्ति प्रदान करता है।
- तेरह मुखी रुद्राक्ष: इंद्र
का प्रतिनिधित्व, सभी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करता है।
- चौदह मुखी रुद्राक्ष: शिव
का प्रतीक, मोक्ष तथा परमानंद प्रदान करता है।
- पंद्रह मुखी रुद्राक्ष: पशुपतिनाथ
का प्रतिनिधित्व, स्वास्थ्य तथा धन प्रदान करता है।
- सोलह मुखी रुद्राक्ष: राम
का प्रतीक, विजय तथा सफलता प्रदान करता है।
- सत्रह मुखी रुद्राक्ष: विष्णु
का प्रतिनिधित्व, धन तथा समृद्धि प्रदान करता है।
- अठारह मुखी रुद्राक्ष: पृथ्वी
का प्रतीक, सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
- उन्नीस मुखी रुद्राक्ष: नारायण
का प्रतिनिधित्व, सभी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करता है।
- बीस मुखी रुद्राक्ष: ब्रह्मा
जी का प्रतीक, सर्वोच्च ज्ञान तथा मोक्ष प्रदान करता है।
- इक्कीस मुखी रुद्राक्ष: कुबेर
का प्रतिनिधित्व, सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
प्रत्येक मुखी रुद्राक्ष का अपना अलग महत्व है तथा इसे धारण करने से विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं। आपस में जुड़े हुए रुद्राक्ष, बहुत ही दुर्लभ तथा विशेष माने जाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से दो या अधिक एक साथ जुड़े हुए रुद्राक्ष होते हैं। इनका अत्यधिक महत्व होता है।यहाँ कुछ प्रमुख जुड़े हुए रुद्राक्ष तथा उनके लाभ बताए गए हैं:
1. गौरीशंकर रुद्राक्ष
विशेषता: यह दो रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो भगवान शिव तथा माता
पार्वती का प्रतीक माना जाता है। जिन्हें "गौरीशंकर रुद्राक्ष" या
"द्वंद्व रुद्राक्ष" कहा जाता है। लाभ: पारिवारिक सद्भाव तथा प्रेम
बढ़ाता है, मानसिक शांति तथा आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। नकारात्मक ऊर्जा
को दूर करता है। शिव तथा शक्ति की कृपा प्राप्त होती है।
2. त्रिजुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह तीन रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक माना
जाता है। लाभ: त्रिदेव की कृपा प्राप्त होती है। जीवन में संतुलन तथा
स्थिरता लाता है। धन, स्वास्थ्य तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि करता है।
3. द्विजुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह दो रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो शिव तथा शक्ति का
प्रतीक माना जाता है। लाभ: जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। रिश्तों
में मधुरता तथा प्रेम बढ़ाता है। आत्मविश्वास तथा साहस में वृद्धि करता है।
4. चतुर्जुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह चार रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो चारों दिशाओं तथा चार
पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का प्रतीक माना जाता है। लाभ: जीवन में सफलता तथा समृद्धि लाता है। चारों दिशाओं से सुरक्षा
प्रदान करता है। आध्यात्मिक तथा भौतिक लाभ प्रदान करता है।
5. पंचजुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह पांच रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतीक माना
जाता है। लाभ: शारीरिक तथा मानसिक संतुलन बनाए रखता है। पंचतत्वों
के दोषों को दूर करता है। जीवन में स्थिरता तथा शांति प्रदान करता है।
6. नवजुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह नौ रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो नवग्रहों का प्रतीक
माना जाता है। लाभ: नवग्रहों के दोषों को दूर करता है। जीवन में सुख, शांति तथा समृद्धि लाता
है। ग्रहों की अनुकूलता बढ़ाता है।
7. एकादशजुटी रुद्राक्ष
विशेषता: यह ग्यारह रुद्राक्ष का जुड़ा हुआ रूप होता है, जो एकादश रुद्रों का
प्रतीक माना जाता है। लाभ: भय तथा चिंता को दूर करता है। आध्यात्मिक ऊर्जा को
बढ़ाता है। जीवन में सुरक्षा तथा शक्ति प्रदान करता है।
सामान्य लाभ:
जुड़े हुए रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को शिव तथा शक्ति की कृपा
प्राप्त होती है। यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह
आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों प्रकार के लाभ प्रदान करता है।
ध्यान देने योग्य बातें:
- जुड़े हुए रुद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे
गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए।
- इसे सोमवार या किसी शुभ मुहूर्त में धारण करना
चाहिए।
- इसे धारण करते समय "ऊँ नमः शिवाय"
मंत्र का जाप करना चाहिए।
जुड़े हुए रुद्राक्ष को
धारण करने से व्यक्ति को शिव तथा शक्ति की
कृपा प्राप्त होती है तथा जीवन में सुख, शांति तथा समृद्धि आती है।
रुद्राक्ष के कई अन्य
प्रकार भी होते हैं, जो विशेष परिस्थितियों या दुर्लभता के कारण जाने जाते
हैं। ये रुद्राक्ष अपनी विशेषताओं तथा लाभों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ कुछ अन्य
प्रकार के रुद्राक्ष तथा उनकी जानकारी दी
गई है:
1. गणेश रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष गणेश जी का प्रतीक माना जाता है तथा इस
पर प्राकृतिक रूप से गणेश जी की आकृति अथवा चिन्ह होते है। लाभ: बुद्धि तथा विवेक में
वृद्धि करता है। बाधाओं को दूर करता है। सफलता तथा समृद्धि प्रदान करता है।
2. लक्ष्मी रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे धनसमृद्धि व ऐश्वर्य हेतु धारण किया
जाता है। लाभ: धन तथा वैभव में वृद्धि करता है। आर्थिक स्थिरता
प्रदान करता है। नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
3. सावर्ण रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष सूर्य देव का प्रतीक माना जाता है तथा
इसका रंग सुनहरा सा होता है। लाभ: स्वास्थ्य तथा ऊर्जा में वृद्धि करता है। मान-सम्मान तथा
प्रतिष्ठा प्रदान करता है। सूर्य के दोषों को दूर करता है।
4. विष्णु रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे सुरक्षा एवं शांति हेतु धारण किया
जाता है। लाभ: भय तथा चिंता को दूर करता है। आध्यात्मिक शांति
प्रदान करता है। विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
5. हनुमान रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष हनुमान जी का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे साहस एवं शक्ति के लिए धारण किया जाता है। लाभ: साहस तथा आत्मविश्वास में
वृद्धि करता है। बाधाओं को दूर करता है। नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करता
है।
6. कालाग्नि रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे सुरक्षा व शक्ति हेतु धारण किया जाता है। लाभ: भय तथा चिंता को दूर करता
है। शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है। आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करता है।
7. नारायण रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष भगवान विष्णु के नारायण रूप का प्रतीक
माना जाता है तथा इसे धन समृद्धि प्राप्ति हेतु धारण किया जाता है। लाभ: धन तथा वैभव में वृद्धि
करता है। आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
8. सिद्ध रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष अनेक सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है,
सामान्यत: उच्चकोटी के तपस्वियों से ही यह आशीर्वाद रूप में उनके शिष्यों को ही
प्राप्त होता है तथा इसे आध्यात्मिक उन्नति के लिए धारण किया जाता है। लाभ: आध्यात्मिक शक्ति में
वृद्धि करता है। सिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक होता है। मानसिक शांति
प्रदान करता है।
9. कुबेर रुद्राक्ष
- विशेषता: यह
रुद्राक्ष कुबेर का प्रतीक माना जाता है, यह सफेद तथा गोल होता है, कभी कभी
इसमें स्वर्ण आभा भी होती है, यह अत्यंत दुर्लभ है तथा इसे धन समृद्धि की कामना
से धारण किया जाता है। लाभ: धन तथा वैभव में वृद्धि
करता है। आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
10. ब्रह्मा रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे ज्ञान व बुद्धि के लिए धारण किया जाता है। लाभ: ज्ञान तथा बुद्धि में
वृद्धि करता है। मानसिक शांति प्रदान करता है। आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता
है।
11. स्वर्ण रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष सोने से बना प्रतीत होता है, ऐसा कहा
जाता है कि, यह देवताओं के पास ही होता है परन्तु यह पृथ्वी पर ही उत्पन्न होता है
अत: मनुष्यों को भी प्राप्त हो सकता है। लाभ: धन तथा वैभव में अतुलनीय वृद्धि
करता है। आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है।
12. राजविद्या रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष राजविद्या का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे सफलता एवं समृद्धि के लिए धारण किया जाता है। लाभ: सफलता तथा समृद्धि प्रदान
करता है। आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
13. स्वर्णिम रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष सोने से बना होता है तथा स्वर्ण की खदान
से प्राप्त होता है इसे अकूत धन तथा
अलौकिक समृद्धि के लिए धारण किया जाता है। लाभ: धन तथा वैभव में वृद्धि
करता है। आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है।
14. सिद्धार्थ रुद्राक्ष
विशेषता: यह रुद्राक्ष सिद्धियों का प्रतीक माना जाता है तथा
इसे आध्यात्मिक उन्नति के लिए धारण किया जाता है। लाभ: आध्यात्मिक शक्ति में
वृद्धि करता है। सिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक होता है। मानसिक शांति
प्रदान करता है।
नोट:
- ये सभी रुद्राक्ष दुर्लभ तथा विशेष माने जाते
हैं। इन्हें धारण करने से पहले इनकी प्रामाणिकता की जाँच आवश्यक है।
- इन्हें धारण करने से पहले गंगाजल से शुद्ध करना
चाहिए तथा शुभ मुहूर्त में धारण करना
चाहिए।
- इन्हें धारण करते समय इनके सम्बन्धित मूलमंत्र
अथवा कम से कम "ऊँ नमः शिवाय" मंत्र का उचित संख्या तथा विधि-विधान
सहित जाप अवश्य ही करना चाहिए अन्यथा, इनमे ऊर्जा का संचार नहीं होगा।
इन रुद्राक्षों को धारण
करने से व्यक्ति को शिव तथा शक्ति की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में सुख, शांति व समृद्धि आती है।
रुद्राक्ष विभिन्न आकारों
में पाए जाते हैं तथा प्रत्येक आकार का
विशेष महत्त्व होता है। रुद्राक्ष के सामान्य आकार निम्नलिखित होते हैं:
- छोटा आकार (8-10 मिमी): यह आकार विशेष रूप से बच्चों तथा उन लोगों के
लिए उपयुक्त होता है जिनके शरीर के गठन में रुद्राक्ष माला को पहनना आरामदायक
हो।
- मध्यम आकार (10-15 मिमी): यह आकार अधिकतर लोगों के लिए उपयुक्त होता है तथा
इस आकार का रुद्राक्ष धारण करना सुविधाजनक होता है।
- बड़ा आकार (15-20 मिमी): इस आकार का रुद्राक्ष अक्सर विशेष अवसरों तथा
धार्मिक अनुष्ठानों में धारण किया जाता है।
- विशाल आकार (20 मिमी से अधिक): यह आकार दुर्लभ होता है तथा विशेष शांति एवं
आध्यात्मिक उद्देश्यों हेतु प्रयोग होता है।
रुद्राक्ष के उपयोग के
कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- मानसिक शांति: रुद्राक्ष
धारण करने से मन की शांति तथा तनाव
कम होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह
ध्यान तथा ध्यानावस्था में सहायक होता है, जिससे
आध्यात्मिक प्रगति होती है।
- स्वास्थ्य: ऐसी मान्यता
है कि, रुद्राक्ष धारण से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, रक्तचाप
नियंत्रित रहता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: रुद्राक्ष
धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा नकारात्मक ऊर्जा दूर होती
है।
- धार्मिक मान्यता: भगवान
शिव के भक्त इसे धारण करते हैं क्योंकि इसे भगवान शिव के आशीर्वाद का प्रतीक
माना जाता है।
धारण करने के नियम: रुद्राक्ष को धारण करने
के कुछ विशेष नियम होते हैं:
- इसे पवित्रता तथा श्रद्धा के साथ धारण करें।
- स्नान के बाद ही इसे पहनें।
- रुद्राक्ष को हमेशा अपने शरीर के संपर्क में
रखें।
- मांस-मदिरा का प्रयोग न करें।
- नैतिकता का पालन करें।
साधना तथा ध्यान: रुद्राक्ष को साधना तथा
ध्यान के समय धारण करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है एवं ध्यानावस्था में गहरी
अनुभूति होती है।
अन्य उपयोग:
- माला: रुद्राक्ष
की माला का उपयोग जप तथा ध्यान के लिए किया जाता है।
- दंड (स्तव) रुद्राक्ष: इसे
हाथ में धारण कर पूजा तथा यज्ञ के समय उपयोग किया जाता है।
- रुद्राक्ष के बीज: इसे
ध्यान के दौरान हाथ में लेकर मानसिक शांति प्राप्त की जाती है।
भद्राक्ष
भद्राक्ष वास्तव में रुद्राक्ष का ही एक प्रकार है। इसे
विशिष्ट धार्मिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व
के लिए जाना जाता है। भद्राक्ष भी रुद्राक्ष के समान दिखता है। यह रुद्राक्ष की
तुलना में थोड़ा हल्का तथा आकार में भिन्न
होता है। कुछ लोग इसे रुद्राक्ष का ही एक प्रकार मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे अलग
मानते हैं।
भद्राक्ष तथा रुद्राक्ष में अंतर:
- आकार: भद्राक्ष आमतौर पर अंडाकार होता है, जबकि
रुद्राक्ष गोल होता है।
- वजन: भद्राक्ष रुद्राक्ष की तुलना में हल्का होता है।
- चमक: भद्राक्ष रुद्राक्ष की तरह चमकदार नहीं होता।
- उपयोग: रुद्राक्ष का उपयोग धार्मिक तथा आध्यात्मिक कार्यों
में किया जाता है, जबकि भद्राक्ष का उपयोग आमतौर पर आभूषणों में
किया जाता है।
भद्राक्ष के लाभ:
- कुछ लोगों का मानना है कि भद्राक्ष धारण करने
से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- यह भी माना जाता है कि भद्राक्ष धारण करने से
मन शांत होता है तथा तनाव कम होता
है।
असली भद्राक्ष की पहचान:
- असली भद्राक्ष पानी में डालने पर डूब जाता है।
- यह रुद्राक्ष की तुलना में थोड़ा हल्का होता
है।
- यह चमकदार नहीं होता है।
भद्राक्ष के बारे में कुछ महत्वपूर्ण
जानकारी निम्नलिखित है:
- पवित्रता तथा शुद्धता: भद्राक्ष
को पवित्रता तथा शुद्धता के प्रतीक
के रूप में माना जाता है। इसे धारण करने से मानसिक तथा शारीरिक शुद्धता बढ़ती है।
- धार्मिक अनुष्ठान: भद्राक्ष
का उपयोग विशेष धार्मिक अनुष्ठानों तथा पूजा में किया जाता है। इसे भगवान शिव की
उपासना में महत्वपूर्ण माना जाता है।
- स्वास्थ्य लाभ: भद्राक्ष
के धारण से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में राहत मिलती है, जैसे
कि उच्च रक्तचाप, तनाव, तथा मनोविकार। इसे स्वास्थ्य में सुधार के लिए
धारण किया जाता है।
- आध्यात्मिक लाभ: भद्राक्ष
धारण करने से ध्यान तथा साधना में गहरी अनुभूति होती है। यह आध्यात्मिक जागरण
तथा आत्मिक विकास में सहायक होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: भद्राक्ष
धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा नकारात्मक ऊर्जा से बचाव
होता है। इसे धारण करने से व्यक्ति में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
- विविध उपयोग:
- रुद्राक्ष की माला: भद्राक्ष को माला के रूप में धारण किया जाता है, जिसे
पूजा तथा ध्यान के समय उपयोग किया
जाता है।
- आभूषण: भद्राक्ष
का उपयोग आभूषण बनाने में भी किया जाता है, जिससे
इसे धारण करना तथा भी सरल हो जाता
है।
भद्राक्ष की विशेषताएं:
- मुखों की संख्या: भद्राक्ष
में मुख (फलियों) की संख्या विशेष होती है। यह आमतौर पर 5 मुखी, 7 मुखी, या 14 मुखी हो सकता है।
- शुभ प्रभाव: इसे
शुभ, सौम्य तथा सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
यह धारण करने वाले व्यक्ति को शांति, समृद्धि
तथा सुरक्षा प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक लाभ: भद्राक्ष
धारण करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है तथा आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है।
भद्राक्ष का उपयोग:
- इसे माला के रूप में पहना जाता है या ताबीज के
रूप में रखा जाता है।
- यह मंत्र जाप तथा ध्यान के लिए उपयोगी माना जाता है।
भद्राक्ष को धारण करने से पहले इसे शुद्ध करना तथा उचित शिव मंत्रों से
अभिमंत्रित करना अति आवश्यक माना जाता है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक तथा मानसिक
शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। भद्राक्ष सामान्यत: 5 मुखी (पंचमुखी) या 7 मुखी (सप्तमुखी) होता है। कुछ मान्यताओं
के अनुसार, 14 मुखी रुद्राक्ष को भी भद्राक्ष कहा जाता है। पंचमुखी, शनि देव तथा कालभैरव से
संबंधित, मनोवैज्ञानिक शांति देने वाला एवं सप्तमुखी, धन तथा समृद्धि का प्रतीक, महालक्ष्मी का आशीर्वाद
माना जाता है।
- आकार तथा बनावट:
भद्राक्ष के दाने सुडौल, चमकदार तथा प्राकृतिक रूप से गोल होते हैं। इन पर प्राकृतिक रेखाएँ (मुख) स्पष्ट दिखाई देती हैं। - ऊर्जा तथा प्रभाव:
इसे "सात्विक ऊर्जा" का स्रोत माना जाता है, जो नकारात्मकता दूर करके सकारात्मकता, सुरक्षा तथा आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।
भद्राक्ष के लाभ:
- मन की एकाग्रता, आध्यात्मिक
प्रगति तथा मंत्र साधना में सहायक।
- तनाव, डर तथा अनिद्रा जैसी
समस्याओं को दूर करता है।
- ज्योतिष में इसे शनि, राहु-केतु
के दोषों को शांत करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- व्यापार तथा धन संबंधी बाधाओं को दूर करने में
मददगार।
उपयोग के नियम:
- भद्राक्ष को धारण करने से पहले गंगाजल या दूध से
शुद्ध करें।
- इसे रविवार या एकादशी के दिन इनके सम्बन्धित विशेष मंत्रों अथवा "ॐ नमः शिवाय"
मन्त्र से अभिमंत्रित करके ही पहनें।
- इसे लाल या काले धागे में धारण करना शुभ माना जाता है।
- अशुद्ध अवस्था में, अशुद्ध स्थान में, तथा
अशुद्ध आचरण में इसे धारण नहीं करना चाहिये एवं यदि एक बार उतार दें तो स्नान
तथा शुद्धि के उपरान्त ही पुन: धारण करें।
भद्राक्ष तथा सामान्य रुद्राक्ष:
- भद्राक्ष को "उच्च कोटि का
रुद्राक्ष" भी माना जाता है, जिसकी ऊर्जा अधिक प्रभावशाली होती है।
- कुछ परंपराओं में इसे विशेष पूजा-अनुष्ठानों के
लिए चुना जाता है।
रुद्राक्ष अथवा भद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को शिव की कृपा प्राप्त होती
है और यह आध्यात्मिक उन्नति में सहायक माना जाता है। रुद्राक्ष के माध्यम से हमें
यह शिक्षा प्राप्त होती है कि प्रकृति और देवताओं के वरदानों का सम्मान करना चाहिए
और उन्हें उचित प्रकार से अपनी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति हेतु उपयोग करना चाहिए।
यदि आप रुद्राक्ष/भद्राक्ष खरीदना चाहते हैं, तो प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए
किसी विश्वसनीय ज्योतिषी या आध्यात्मिक स्टोर से ही लें।
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ॐ श्री गणेशाय नमः प्रिय पाठक, जीवन के इस कलियुग में हम सब किसी न किसी रूप में मानसिक, शारीरिक या आर्थिक कष्टों से जूझ रहे हैं। इसका एक मुख...
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